सृजन के महारथी
जग साक्षी है तुम ही तो सच्चे कर्तव्य निभाये हो ।
हे सृजन के महारथी ! तुम क्यों इतना घबराए हो ।।
नगर बनाये सड़क बनाये शहर बनाये भी तुमने ।
भूमंडल की सुंदरता में प्राण गंवाए भी तुमने ।।
कौन विवशता है जिसको तुम अन्तरतर में छिपाए हो।।
धरा से लेकर उच्च गगन तक गाते यशगाथा तेरी ।
छिपी है फौलादी सीने में अकह कहानी सब तेरी ।।
हे भुजबल के विश्वासी ! तुम ही परचम लहराए हो ।।
श्रमदान और कर्मदान की तुम ही जीवित मूरत हो ।
प्रगति पंथ के दर्पण में तुम घोर विवशता सूरत हो।।
शोषण के ठेकेदारों से तुम बहु विधि धोखे खाये हो ।।
हाथ नहीं फैलाये तुमने कभी किसी के भी आगे ।
नवसृजन में तन मन देकर डटे रहे सबसे आगे ।।
अपनी मेहनत के बल पर सबसे लोहा मनवाए हो ।।
रोजी रोटी के साधन सब छिने जा रहे हैं तुमसे ।
चिंता और घबराहट के घन घेर रहे हैं चहुँ दिश से ।।
आँसू सूख गए आंखों से तुम दिखते कुछ घबराए हो ।। **
- रामचन्दर '' आजाद ''
टी. जी. टी. ( हिन्दी )
जवाहर नवोदय विद्यालय
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला–सवाई माधोपुर
( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर।
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