प्रतीक्षा
पीते – पीते मैंने महसूस
किया कि अब नशा चढ़ने लगा है | मेज के सामने वाली कुर्सी पर बैठे रवि की ओर देखा तो
वह चुप था | लगा , उसे भी नशा चढ़ता जा रहा है | मुझे कभी – कभी पीना अच्छा लगता है
, पर मैंने शराब को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया |
‘ पहले दोनों छोटे भाई दूकान के लालच
में आते रहते थे , पर अब जब दूकान नहीं रही तो दोनों का आना बिल्कुल बंद हो गया |
कोई खबर नहीं ली कि बाबा कैसे हैं ? ... बड़ा भाई कैसा है ? ... उनके बच्चे कैसे हैं
? ... किस हाल में हैं ? ... दोनों अपनी – अपनी जिम्मेदारियों से भाग निकले | ’
‘ पर तुम तो अपनी जिम्मेदारियों से
नहीं भागे ! ’ कहकर मैंने शराब का घूँट भरा |
‘ कैसे भागता – बड़ा जो हूँ | ’
‘ सत्य कहते हो साथी | ’
थोड़ी देर तक दोनों के बीच शांति छाई
रही | धीरे – धीरे शराब पीते रहे |
‘ अब बाबा की हालत कैसी है ? ’ मैंने
पूछा |
‘ बेबस और लाचार ... महीनों से बिस्तर
पकड़े हुए हैं | लकवा से शरीर का बाईं ओर का हिस्सा बेकार हो चुका है | टट्टी ...
पेशाब ... सब बिस्तर पर ही ... ’ , वह थोड़ी देर के लिए रुका , ‘ तुम बोर तो नहीं हो रहे ? ’
‘ नहीं साथी ... बिल्कुल नहीं | ’ मैं कहता हूँ | जानता हूँ की वह अपने मन के
भीतर की पीड़ा की परतें उधेड़ रहा है | हरेक के सामने कह भी नहीं सकता | मैं उसके
बचपन का मित्र हूँ - इस वजह से |
‘ सब कुछ अपने आप ही करती है | कोई
शिकायत नहीं | मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सका | ’
शायद उसे अपनी पत्नी की याद आई , इसलिए कहा उसने , ‘ तीन – चार सौ तो हर माह बाबा की दवा – दारु में
खर्च हो जाते हैं ... क्या करूँ उसके लिए ! ’
‘ जीवन जीना दूभर हो रहा है ... महँगाई
है कि सिर चढ़कर बोल रही है | ’ मैंने कहा
, फिर प्लेट में रखा नमकीन खाने लगा |
थोड़ी देर बाद मैंने पूछा,‘ पिछले
संडे भाभी से झगड़ा क्यों हो गया ?’
‘ किसने कहा ? ’ वह आश्चर्यचकित होकर मुझे देख रहा था |
‘ बबलू मिला था चौक पे | ’ मैंने बताया |
‘ कह रही थी कि बुढऊ सुटक भी तो नहीं
रहे , ताकि उन्हें दुख – दर्द से मुक्ति मिल जाए | मैं आपे से बाहर हो गया और ... ’
, वह एकदम धीमी आवाज में बोला , ‘ शायद
बाबा ने सुन लिया था | उस दिन से उन्हें आभास हो गया कि बे जीवन की उस अवस्था में
पहुँच गए हैं , जहाँ यह तय होता है कि अब मौत निश्चित है ! तभी तो सब से बिछुड़ने
और सब – कुछ खो देने की गहरी पीड़ा वे अनुभव करने लगे हैं ! ’
‘ ओह ! ’ मैंने गहरी लम्बी साँस भरी | काफी देर तक
भयग्रस्त उसे देखता रहा |
रवि ने गिलास की सारी शराब एक ही बार
में गले में ऊँड़ेल ली और बोला , ‘ जानते हो तुम – उस दिन से बाबा हमेशा दरवाजे की
ओर टकटकी लगाए रहते हैं , जैसे उन्हें किसी की प्रतीक्षा हो ! ’ **
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन
नम्बर– 09414771867
सुन्दर, बढ़िया, अच्छा 🌺🌺
ReplyDeleteअच्छी लघुकथा।
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