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25.6.20

पवन शर्मा की लघुकथा - '' प्रतीक्षा ''








                     प्रतीक्षा

पीते – पीते मैंने महसूस किया कि अब नशा चढ़ने लगा है | मेज के सामने वाली कुर्सी पर बैठे रवि की ओर देखा तो वह चुप था | लगा , उसे भी नशा चढ़ता जा रहा है | मुझे कभी – कभी पीना अच्छा लगता है , पर मैंने शराब को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया |
          ‘ पहले दोनों छोटे भाई दूकान के लालच में आते रहते थे , पर अब जब दूकान नहीं रही तो दोनों का आना बिल्कुल बंद हो गया | कोई खबर नहीं ली कि बाबा कैसे हैं ? ... बड़ा भाई कैसा है ? ... उनके बच्चे कैसे हैं ? ... किस हाल में हैं ? ... दोनों अपनी – अपनी जिम्मेदारियों से भाग निकले | ’
          ‘ पर तुम तो अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भागे ! ’ कहकर मैंने शराब का घूँट भरा |
          ‘ कैसे भागता – बड़ा जो हूँ | ’
          ‘ सत्य कहते हो साथी | ’
          थोड़ी देर तक दोनों के बीच शांति छाई रही | धीरे – धीरे शराब पीते रहे |
          ‘ अब बाबा की हालत कैसी है ? ’ मैंने पूछा |
          ‘ बेबस और लाचार ... महीनों से बिस्तर पकड़े हुए हैं | लकवा से शरीर का बाईं ओर का हिस्सा बेकार हो चुका है | टट्टी ... पेशाब ... सब बिस्तर पर ही ... ’ , वह थोड़ी देर के लिए रुका ,  ‘ तुम बोर तो नहीं हो रहे ? ’
          ‘ नहीं साथी ... बिल्कुल नहीं | ’  मैं कहता हूँ | जानता हूँ की वह अपने मन के भीतर की पीड़ा की परतें उधेड़ रहा है | हरेक के सामने कह भी नहीं सकता | मैं उसके बचपन का मित्र हूँ  - इस वजह से |
          ‘ सब कुछ अपने आप ही करती है | कोई शिकायत नहीं | मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सका | ’  शायद उसे अपनी पत्नी की याद आई , इसलिए कहा उसने ,  ‘ तीन – चार सौ तो हर माह बाबा की दवा – दारु में खर्च हो जाते हैं ... क्या करूँ उसके लिए ! ’ 
          ‘ जीवन जीना दूभर हो रहा है ... महँगाई है कि सिर चढ़कर बोल रही है | ’  मैंने कहा , फिर प्लेट में रखा नमकीन खाने लगा |
          थोड़ी देर बाद मैंने पूछा,‘ पिछले संडे भाभी से झगड़ा क्यों हो गया ?’
          ‘ किसने कहा ? ’  वह आश्चर्यचकित होकर मुझे देख रहा था |
          ‘ बबलू मिला था चौक पे | ’  मैंने बताया |
          ‘ कह रही थी कि बुढऊ सुटक भी तो नहीं रहे , ताकि उन्हें दुख – दर्द से मुक्ति मिल जाए | मैं आपे से बाहर हो गया और ... ’ ,  वह एकदम धीमी आवाज में बोला , ‘ शायद बाबा ने सुन लिया था | उस दिन से उन्हें आभास हो गया कि बे जीवन की उस अवस्था में पहुँच गए हैं , जहाँ यह तय होता है कि अब मौत निश्चित है ! तभी तो सब से बिछुड़ने और सब – कुछ खो देने की गहरी पीड़ा वे अनुभव करने लगे हैं ! ’
          ‘ ओह ! ’  मैंने गहरी लम्बी साँस भरी | काफी देर तक भयग्रस्त उसे देखता रहा |
          रवि ने गिलास की सारी शराब एक ही बार में गले में ऊँड़ेल ली और बोला , ‘ जानते हो तुम – उस दिन से बाबा हमेशा दरवाजे की ओर टकटकी लगाए रहते हैं , जैसे उन्हें किसी की प्रतीक्षा हो ! ’ **

    
       - पवन शर्मा 












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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन 

नम्बर– 09414771867

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