सम्भावनाओं के नागपाश
दिन की देहरी पर बैठी
धूप के पास आये थे कभी
स्वर्ण – हंस |
और
क्रान्तिधर्मा चेहरे
चमकाये थे सूरज ने
रोशनी से |
लेकिन
भर दोपहर
बड़ी ही चालाकी से
खुदगर्ज सुविधा – भोगियों
ने
काट दिये उनके डैने |
और जकड़ कर
रूपहली सम्भावनाओं के नागपाश
में
छोड़ दिया है उन्हें
रात से घिरे
अन्धे यातना – शिवरों में
सिर्फ़ अंधकार बटोरने के लिए
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- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी |
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