बेफिक्र मुसाफ़िर
सिर पर गठरी कंधे गैंती,
कहाँ जा रहे हो राही ।
सारा शहर लॉक डाउन है
तुम पर क्या विपदा आई ।।
काम काज सब बंद पड़े हैं
सभी छिपे हैं अपने घर ।
औद्योगिक संस्थान बन्द हैं
कहाँ चले इतने तत्पर ।।
इधर न कोई नगर शहर है
इधर न कोई गाँव गिरांव ।
इतनी भीषण सी गर्मी में
कहां तुम्हारा छाँव ठिकांव ।।
डोर कौन सी खींच रही
जो खिंचे जा रहे हे राही ।
किस मंजिल की आकांक्षा में,
भूख प्यास भूले भाई ।।
कितनी दूर अभी जाना है
हे सृजन के अधिकारी ।
मेहनत तो हर अंग तुम्हारे
फिर क्यों इतनी लाचारी ?
रुको, रुको कुछ तो बोलो ना ।
कहाँ चले के चले जा रहे ।
क्या घरवाली की चिट्ठी से
व्यथित खिंचे के खिंचे जा रहे।।
मुझे न जाना नगर शहर
और मुझे न औद्योगिक संस्थान।
कोरोना के महासमर ने
लूट लिया है मान अभिमान ।।
अपने हाथों से मैंने जिस
नगर शहर को चमकाया ।
उसी नगर और शह ने मुझ पर
भीषण कहर है बरसाया ।।
जिस दुनिया के सम्मुख मैंने
हाथ नहीं फैलाये हैं ।
आज उसी दुनिया ने देखो
रक्तिम अश्रु रुलाये हैं ।।
कोई शहर नहीं जी सकता
बिन मजदूर के हे भाई !
भला बताओ कैसे रहें जब
बात पेट पर है आई ।।
मंजिल दूर बहुत है भाई ।
और नहीं कोई पथ साधन ।
फिर भी जिसने राह सुझाई
उस प्रभु का शत शत अभिवादन।।
जिससे आशा मिली निराशा
सब स्वारथ के चोर ।
निकल पड़ा हूँ दृढ़ इच्छा ले
अपने गाँव की ओर ।। **
- रामचन्दर
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
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