माँ पर सभी ने बहुत लिखा है। आज मैनें पिता पर कुछ पंक्तिया लिखी है।सभी को सादर समर्पित है।
पिता
पिता से ही तो महकता हर कुल है ।
पिता ही कल्पवृक्ष की सजीव मूल है ।।
ना वजूद मेरा होता , ना मैं पहचाना जाता ।
मेरे नाम के साथ गर, तुम्हारा नाम न आता ।।
बिना पिता के जीवन जैसे कोई धूल है ।
पिता से ही तो महकता हर कुल है ।।
मन में कई आशाएं , लेकर रोज निकलता है ।
दिन भर मेहनत करके, पेट सभी का भरता है ।।
परिस्थिति कोई आये, रहता सदा प्रतिकूल है ।
पिता से ही तो महकता हर कुल है ।।
पिता माँ का सिंदूर है, किसी बहन की राखी है ।
पिता ही दादा दादी के, बुढ़ापे की बैसाखी है ।।
पिता है तो बच्चों की, मुरादें होती कुबूल है ।
पिता से ही तो महकता हर कुल है ।।
पिता है तो पूरे , होते सभी के सपने है ।
पिता से ही तो सारे , रिश्ते नाते अपने हैं ।।
पिता की बगियाँ में कभी, न मुरझाता फूल है ।
पिता से ही तो महकता हर कुल है ।। **
- कमलेश शर्मा "कवि कमल"(अध्यापक)
मु.पोस्ट:- अरनोद, जिला:- प्रतापगढ़(राज.)
मो. 9691921612
Email :- parthkamal2012@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान
),फोन नम्बर– 09414771867
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