कवि योगेन्द्र जाट |
शहीद
क्या हालत थी घरवालों की
उन मेहंदी वाले हाथों की
आंखे देख जब फूट पडी
तब सुहाग की टूटी थी चूड़ी
दिल पर सदमों के छाले थे
जब हाथों ने मेहंदी के खून से सनकर
वो मंगलसूत्र उतारे थे
कुछ अब भी पड़े थे घाटी में
भरने लोहा दुश्मन की छाती में
ना कुछ सोचा ना कुछ समझा
दिलो जान वतन को माना है
तुम्हारी रक्षा करने की खातिर
जवानी बर्बाद करने का
शौक इश्क से पाला है
वो भी किसी के पति
भाई किसी के बेटे हैं
आज उन्हीं की खातिर तुम
अपने घरों में चैन से सोते हैं
कुछ सिमट गए धरती के दामन में
कुछ अब भी सीमा पर मौत ओढ़ कर सोते हैं
जिस घर का वो चिराग बने थे वो बोझ गमों का ढ़ोते हैं
उनके नयना भी ख्वावों में चुपके चुपके रोते है
- योगेन्द्र जाट
jnv swm 2019
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
वाह! शानदार कविता।
ReplyDeleteजय हिंद।
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन...।
ReplyDeleteआ योगेंद्र जी, देशप्रेम से ओतप्रोत प्रेरक रचना के लिए हार्दिक साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
ReplyDeleteसार्थक रचना जय हिंद जय भारत
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