तेरी उमर
कि तेरी उमर गुजर गई बरसाने में , पर तुझे प्रेम समझ ना आया है.
मोहन की उन गलियों में तूने रास ही अलग रचाया है.
तूने प्रेम शुरस की मटकी में माखन अलग जमाया है .
तेरी इस बेरुखी का अब तक किस्सा समझ ना आया है.
तूने गोपियों के साथ रह कर भी स्नेह ध्येय ना पाया है..
कागज की कश्तियों में तूने अपना सफर बनाया है.
कुछ सीख के आ उन प्रेमी पगलियों से ..
ज़िन्होनें ध्यान श्री चरणों में लगाया है..
तुझे प्रेम के सारोवर में रह कर भी बस पानी नजर ही आया है
संगीत तेरा ना बना नही तूने जाने कैसे स्वर को सजाया है.
तेरी सहमी बिसरी य़ादों ने नसीब को तेरे दिखाया है.
तूने खुद के अहम में आकर के जन्मों का भाग्य गवाया है. **
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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