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27.5.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा की कविता - '' जिज्ञासा और उपलब्धि ''




















( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के काव्य - संग्रह - '' अक्षरों के सेतु '' से ली गई सन 1965 में लिखित 

कविता  )


जिज्ञासा और उपलब्धि


( प्रथम सम्मेलन की अनुभूतियों को दिया गया शब्दरूप )


मेरा जिज्ञासु ह्रदय ,
पल भर को ठिठका
फिर ठहर गया |


कौतुहल था शायद ,
शायद जिज्ञासा थी ,
क्योंकि –
उस धरातल पर
शब्द बेजरूरत थे ,
अनबोला ख़ामोशी
भाषा की परिणति थी ,
भावों की भाषा थी |


अनहोना होने की आशा थी |
आह ,
तभी आकर्षण के मंत्रों से कीला
मेरा यह भावुक मन ,
लहरों के गहरे में उतर गया |


मेरा जिज्ञासु ह्रदय ,
पलभर को ठिठका
फिर ठहर गया |


अनायास
अटाटूट पानी से भरी नदी
सूने औ’ अंधे गलियारे से
लायी मुझको समेटे
शत – सहस्त्र बाँहों में ,
दिगंबरा अपरिसीम कविता के
वत्सला उजालों में ,
लज्जारुण यौवन का
छंद हो मुखर गया |


सीपी में ,
शंखों में ,
मोती औ’ मूंगों का
द्वीप - सा सँवर गया |


मेरा जिज्ञासु ह्रदय
पलभर को ठिठका
फिर ठहर गया |


अनायास
जिसमें थे जूही के फूल खिले अनगिनती ,
हरियाली छांहों में
-   -  बौरायी – सी विनती |


सौरभ ही सौरभ है ,
बिनपरसे
तन – मन औ’ प्राण में समा गया ,
मादकता का खुमार – जैसा कुछ छा गया ,
-  -  मूर्छित बन गया |


साँसों में
एक अजब गंध घुली |


छवि की वह छुअन
मूक रोशनी लहर जैसी
बाहर से भीतर तक मुझको नहला गयी ,
बावला बना गयी |
इस तन में
हुआ एक नया – नया संवेदन |


नस – नस में
विद्युत सी दौड़ गयी ,
संयम के मर्यादित पहरों को तोड़ गयी |
अंग – अंग कसा
आह , विह्वल मदमाता – सा
धन – ऋण के दो विलोम ध्रुवों को जोड़ गयी |


पाटल के दल – के – दल
तिर आये बाँहों में ,
इन्द्रधनुष उग आये
उम्र की निगाहों में |


डूब गया
तन में तन
तृषित और आकांक्षित
मेरा रसभीगा मन ,
चंदन की घाटी में उतर गया |


मेरा जिज्ञासु ह्रदय ,
पल – भर को ठिठका
फिर ठहर गया |


ये ही क्षण –
अमृत के बीजों को बोते हैं ,
ये ही क्षण –
जीवन में मधुरता सँजोते हैं ,
ये ही क्षण –
सिरज रहे तुलसी औ’ कालिदास
ये ही क्षण –
आत्मप्रभ ज्ञान – दीप होते हैं |
ये ही क्षण असंयम के
ये ही क्षण अमर्यादित
-  - पूजित हो पुण्य हुए |


मुझको
जो परम्परा प्राप्त हुई
जीवन की
अपने से आगे वह मैंने बढ़ाने को ,
-   - प्राणों से प्राण रचे
पितृ - ऋण चुकाने को |


सार्थक
औ’ पूर्णकाम
मेरा यह पिण्ड हुआ
देह – प्राण धन्य हुए |


मेरा विचारक मन
संशय से परे
दिव्य भावों से भर गया |


मेरा जिज्ञासु ह्रदय
पल भर को ठिठका
फिर ठहर गया | **

           - श्रीकृष्ण शर्मा 
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई

 माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867


    



  

5 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 28 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपने इस रचना को '' पाँच लिंकों का आनंद '' में 28 मई को साझा की है , इसके लिए आपको बहुत - बहुत धन्यवाद | मैं बिल्कुल इस अवसर का साहित्यिक रूप से लाभ उठाऊंगा |

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  3. उत्कृष्ट रचना

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    Replies
    1. धन्यवाद पम्मी जी |

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