( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
बड़े बाबू और साहब
आते ही साहब ने सारे बाबुओं
पर अफसरी रुआब झाड़ दिया | पहले तो बाबू सहमे , झिझके , डरे – लेकिन बाद में पता
चला कि शाम होते ही साहब ‘ टुन्न ‘ हो जाते हैं , तो बाबुओं का डर जाता रहा |
एक दिन साहब ने बड़े बाबू से दो सौ रुपए
लिए और कहा , ‘ ऑफिस के लिए स्टेशनरी
खरीदेंगे , उसमे ‘ एडजेस्ट ‘ कर लेगें | '
शाम को साहब ‘ टुन्न ' हो गए |
कुछ दिन बाद साहब ने बड़े बाबू से दो सौ
रुपए लिए | रुपये देते समय बड़े बाबू ने याद दिलाई , ‘ साब चार सौ हो गए हैं | '
‘ ऑफिस से ‘ एडजस्ट ‘
कर लेंगे | ' साहब ने कहा |
शाम को साहब फिर ‘ टुन्न ' हो गए |
एक दिन बड़े बाबू बोले , ‘ साहब आठ सौ हो गए हैं | ‘
‘ किस बात के ? ' साहब अकड़ गए ,
‘ ऑफिस अकाउन्ट्स से आठ सौ निकाल लिए ! यह तो गबन का केस है , रिकवरी करवा
लूँगा ! '
बड़े बाबू भौंचक्के रह गए | इधर – उधर कर
अपनी जेब से आठ सौ रूपये भर दिए |
एक दिन कुछ बिलों पर साइन कराते वक्त
बड़े बाबू ने कुछ ब्लैंक पेपर पर साहब के साइन ले लिए |
शाम को ऑफिस के सारे बाबू ‘ टुन्न ' थे |
साहब हजारों में फँस गए थे !
- पवन शर्मा
पवन शर्मा कवि , लघुकथाकार , कहानीकार |
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पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
धन्यवाद भाई सुनील जी. मेरी लघुकथाओं को अपने ब्लॉग पर देने के लिए.
ReplyDeleteस्वागत है |
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