( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के काव्य - संग्रह
- '' अक्षरों के सेतु '' से ली गई 1973 में रचित रचना )
खजैले कुत्ते का त्रास कौन
जानता है ,
हकलाहट को अनुप्रास कौन
मानता है ,
तेली का बैल हो या इक्के का
घोड़ा –
लाशों के लिए युद्ध कौन
ठानता है ?
फिर
अंधों के आगे
ये सब बनाव क्यों है ?
गूंगों और बहरों से भी दुराव
क्यों है ?
शोषण का ऐसा कायर स्वाभाव
क्यों है ?
जानते हैं हम
लंगड़ी – बौनी ज़िन्दगी का
बैसाखियों वाला जुलूस
कुछ पन्नों तक जायेगा ,
और
उपलब्धियाँ उसकी
आम नहीं , कुछ ख़ास के ही
दाय में आयेंगी |
हम यह भी जानते हैं
चंद झंडाबरदारों का
प्रवक्ता
यह इतिहास असत्य है ,
जो
नहीं दुहराता
जान – लेवा संघर्ष
हम – जैसे सामान्य जनों का
|
पर हम जानते हैं
शक्ति और सामर्थ्य बढ़ती हैं
जिस तेजी से / बह जाती हैं
उसी गति से ,
और
रह जाते हैं
असमर्थताओं के ढूह
और उन पर खड़े चंद बुत ,
- असफलताओं के |
इसलिए
विश्वास है
हाथों में हमारे
सदैव नहीं रहेगा
अब घुटन और यंत्रणाओं का
- एक छोर |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
इस रचना को शामिल करने के लिए आपको धन्यवाद मीना जी |
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी |
ReplyDeleteऐसी उत्कृष्ट रचनाओं से ही हम जैसे नवयुवकों को बहुत कुछ सीखने के साथ ही कुछ लिखने की भी प्रेरणा मिलती है । सादर प्रणाम । - अखिलेश कुमार शुक्ल
ReplyDeleteआपने इस रचना को पसन्द किया इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ अखिलेश जी |धन्यवाद |
Deleteउत्कृष्ट सृजन ! रचना की भावभूमि ऊंचाई लिए हुए है। ह्रदय को आंदोलित करती हुई रचना ! --ब्रजेन्द्र नाथ
ReplyDeleteब्रजेन्द्र जी आपको बहुत - बहुत धन्यवाद | आप जैसे कविता के भावों के पारखियों से ही आज साहित्य जिन्दा है |
ReplyDeleteज़िंदगी की तह को खोलता सारगर्भित सृजन आदरणीय सर.
ReplyDeleteसादर