( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
बूढ़ी आँखें
' आँख ज्यादा दर्द कर रही है अम्मा ? '
' हाँ बुढ़ापे की आँखें हैं न | '
' दो - तीन दिन से आँखों में पानी भी अधिक आ रहा है | '
' ठीक हो जाएँगी | '
' अब तनख्वाह मिलने दे , आँखें चैक करवा दूँगा ... चश्मा बनवा दूँगा | '
' रहने दे पहली तनख्वाह मिलेगी , बहू के लिए साड़ी-वाड़ी ले लेना | '
' बिना साड़ी के वो क्या नंगी घूम रही है ! पहले आँखें चैक हो जाएँ ... चश्मा बन जाए ... फिर उसके लिए साड़ी भी ले लूँगा | '
अचानक अम्मा ने पानी झरती आँखों से उसकी ओर देखा , फिर झुर्रीदार चेहरे पर स्नेहमयी मुस्कान तिर आई | **
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा लघुकथाकार , कहानीकार , कवि |
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पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा किया जाना भी रचनाकार को प्रोत्साहित करती है. धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद आपको 🙏
Deleteबहुत सुन्दर लघुकथा ! भाव सम्प्रेषण में सक्षम लघुकथा ! --ब्रजेंद्र नाथ
ReplyDeleteआभार आपका और बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteविचारणीय एवं प्रेरक लघुकथा जिसमें प्राथमिकताओं और मानव व्यवहार की कमज़ोरी की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है.
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद आपको 🙏
Deleteविचारणीय ,हृदयस्पर्शी सृजन सर ,सादर नमन
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार आपका 🙏
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