अभिमन्यु की हत्या
छेद कर
जैसे कलेजे में
गगन के कील ,
हत्यारे - सरीखा है खड़ा
दुर्दम्य - ऊँचा ताड़ ,
बौने पेड़ ठठ - के - ठठ
अवश - निरुपाय |
जैसे -
द्रौपदी कौरव - सभा में
लाज को रोती ,
दु:शासन पाशविकता से लगाता कहकहे ,
सहमा हुआ स्वर सुन नहीं पड़ता
निरर्थक शोर में |
आसनों धृतराष्ट्र की औलाद
बैठी भोगतीं सुख और सुविधा
पाण्डवों का हक़ |
और
रच दुष्चक्र ,
जन - जन को रुपहली ज़िन्दगी से काट
निर्वासन - अवधि को काटने
भेजा किसी अज्ञात पथ पर |
और
महँगाई - अभावों का बना कर व्यूह ,
मार डाला
चेतनायुत - उर्जस्वित अभिमन्यु | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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