( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
ये कविता '' मजदुर दिवस '' पर मजदूरों को समर्पित
ईटों की गर्द
और कोयलों की कालिख में
लिपटी हुई मजदूरिन शाम |
दिन भर की हाड़ - तोड़
मेहनत से चूर देह
और शिथिल काँधे ,
आँखें निस्तेज और
मन - मन - भर बोझिले
पाँव थके - माँदे ;
फिर कल की
चिन्ता में अब से ही
पिटी हुई मजदूरिन शाम |
गुमसुम औ ' बुझी - बुझी
बैठी है एकाकी
इस सूने वातायन ,
कोलाहल - चहल - पहल
बचे नहीं
अब तम के आँगन ;
जीवन की
बेबस लाचारी - सी
मिटी हुई मजदूरिन शाम | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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कवि श्रीकृष्ण शर्मा |
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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