ग़ज़ल ( 3 )
खुद महफ़ूज रहकर ख़ातिरदारी कीजिए ,
फिर ज़िन्दगी के लिए ज़मीरदारी कीजिए।
जान के साथ जहान को समझिए जरा,
हौसला जानकर ही तीमारदारी कीजिए ।
मझधार में पड़ी है ज़िन्दगी हर किसी की,
थोड़ी मदद के साथ ईमानदारी कीजिए।
जिन रत्नों ने आज दी है शहादत अपनी,
उनकी शहादत के लिए असरदारी कीजिए ।
मुश्किलें जान अश्क आते हैं निगाहों में ,
घमंड छोड़कर दिल में समझदारी कीजिए ।
ख़ुशनसीब हैं आप जो सलामत है ज़िन्दगी,
बेहतर सेहत के लिए खबरदारी कीजिए ।
इत्तेफाक से मुलाकात हो जाए गर कभी ,
बस पाक दामन के लिए रिश्तेदारी कीजिए।
हसरतों के साथ खड़ें हों दीन दुनिया में ,
भूख मिटाने के लिए हिस्सेदारी कीजिए।
सबक़ लेने की जरूरत है बीमारी से 'आनंद'
जहाँ की याद में थोड़ी हाजिरदारी कीजिए।**
- आर. पी.आनंद(एम.जे.) गोरखपुर
-----------------------------------------
रामप्रीत आनंद गजलकार |
-----------------------------------------
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |