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26.4.20

संजय वर्मा '' दृष्टि '' की कविता - '' सेवानिवृत ''









सेवानिवृत

सेवानिवृत होने पर
लगता जैसे
वृक्ष से सूखा पत्ता
टूट कर 
अपने कार्य औऱ
साथियों को छोड़कर
जमीन से लगकर
लंबी थकान उतार रहा हो 
सूखे पत्ते का 
कार्य अनुभव 
ये बताने की चेष्टा
पेड़ पर नए पत्तों को 
आँधियों से कैसे बचना
नए पत्तों को बताता है 
जैसा सेवानिवृत 
नए को उनके पूछने पर 
समाधान बताता 
ये समय बद्ध चक्र
चलता रहता
वर्षों संग रहने का नेह
विदा के समय आँसू
गिराता
पीपल का वृक्ष भी तो
आंसू रूपी पानी की फुंवार
गिराता
जब सूखा पत्ता शाख से
संग छोड़ता
वो भी सेवानिवृत होता
जैसे इंसान होता 
सेवानिवृत **




- संजय वर्मा "दृष्टि"
       मनावर (धार ) 9893070756

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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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