( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है
)
तम का आलम
बाहर तम है , भीतर तम है ,
कैसा यह तम का आलम है ?
जिधर देखिये तम ही तम है ,
इस तम में सूरज भी कम है |
पहले तो सब को खलता था ,
तम में भी दीपक जलता था ,
पहले दीपक के नीचे था ,
अब दीपक के ऊपर तम है |
नहीं कहीं उजियारा बाक़ी ,
जंगी वृत्तियाँ अंध गुहा की ,
इस कल्मष में सभी अजनबी ,
और ज़िन्दगी एक वहम है | *
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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