मन बाहर न चल
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर मौत व्याप्त है।।
अंगार धधक रहा, पैर बाहर न कर।
काल के मुँह में जाने की जरुरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर मौत व्याप्त है।।
अंगार धधक रहा, पैर बाहर न कर।
काल के मुँह में जाने की जरुरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर प्रवात दर्दनाक है।
दर्द लेने की जरूरत न समझ।।
जीवन अनमोल है।
श्मशान सजाने की जरूरत न कर।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
दर्द लेने की जरूरत न समझ।।
जीवन अनमोल है।
श्मशान सजाने की जरूरत न कर।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
मन चंचल करने की जरूरत न कर।
सड़क पर टहलने की जरूरत न समझ।।
दूसरे को दिखाने की कोशिश न कर।
मृत्यु से हाथ मिलाने की जरूरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
सड़क पर टहलने की जरूरत न समझ।।
दूसरे को दिखाने की कोशिश न कर।
मृत्यु से हाथ मिलाने की जरूरत न समझ।।
हे मन चौखट से बाहर न चल।
बाहर काल मँडरा रहा है।
इसे छूने की कोशिश न कर।।
दिल पसीज जायेगा।
संसार बिखर जायेगा।।
हे मन चौखट से बाहर न चल। **
इसे छूने की कोशिश न कर।।
दिल पसीज जायेगा।
संसार बिखर जायेगा।।
हे मन चौखट से बाहर न चल। **
- संगीत कुमार
जबलपुर
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