आखिर वक्त की खता क्या है
कभी-कभी मुहब्बत में दिल टूट जाते हैं
अक्सर अपनों के साथ छूट जाते हैं
आखिर वक्त की खता क्या है
जिंदगी तो रेलगाड़ी की पटरियों की तरह है
चलता रहता है चलता रहता है
अचानक मोड़ आ जाती है
कभी टकराव हो जाता
तो कभी पार हो जाता
अच्छा हो या बुरा इसमें
आखिर वक्त की खता क्या है
चाहत तो सभी के होते हैं
पंछी जैसे आसमां में उड़ने का
मगर कभी आसमां में उड़ने वाले पंछी से पूछना
उन पर क्या गुजरती है
जिंदगी में हरियाली बाग रहे
तो कभी रेत का मैदान
कभी मेले बाजारों की तरह सजी रहे
तो कभी वीरानी सुनसान
कैसी भी हो
आखिर वक्त की खता क्या है
मुहब्बत तो यूं ही देखते देखते हो जाती है
नयन के मिलन के बाद
दिल का भी मिलन हो जाती है
मुहब्बत करना गुनाह तो नहीं
ना जाने क्यूं कुछ लोग मुहब्बत के नाम पर
बदनाम बेलगाम जैसे शब्दों से स्टाम्प लगा जाते हैं
देखते देखते मुहब्बत नफरत में बदल जाए तो
आखिर वक्त की खता क्या है
लोगों की जिंदगी में कुछ भी घटना घटे
सभी आरोप लगाते हैं वक्त पर
आखिर बताओ तो सही
कि आखिर वक्त की खता क्या है **
------------------------------------------------
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |