( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
समझ
वह खाता जा रहा है , बिना
सिर उठाए | शादी जैसी प्रसन्नता या चहल – पहल नहीं है | तेरहीं का भोज है , इसलिए
| सरपंच की अचानक मौत से पूरा गाँव स्तब्ध रह गया है |
‘ कक्कू ! ' बगल में बैठे बुजुर्ग से वह बोला |
‘ का है रे ? ' खाता हुआ बुजुर्ग बोला |
‘ बड़ो अच्छो थो सरपंच | ' वह बोला |
‘ हाँ रे , हरेक के दुःख – दर्द ऐ अपनो
ही समझतो थो | ‘ बुजुर्ग को सरपंच की मौत
का गहरा अफ़सोस था |
‘ बड़े दिनों बाद जे चीजें खावे कूं
मिली हैं | ' बुजुर्ग की बात को अनसुनी कर
बाल सुलभ आवाज में वह आठ वर्षीय बालक बोला , ‘ कक्कू , ऐसो खाना रोज – रोज खावे
कूं मिले तो मजा आ जावे ! '
बुजुर्ग उसका चेहरा ताकने लगा | वह
इत्मिनान से बिना सिर उठाये खा रहा था |
- - पवन शर्मा
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