( प्रस्तुत कविता- पवन शर्मा की पुस्तक -'' किसी भी वारदात के बाद '' से ली गई है )
नंगी दीवार
दरवाज़ा पुश करके वह अन्दर घुस गया | उसे देख उनकी भौंहें तिरछी हो गईं , ' अब तुम ऑफिस में भी आने लगे ! '
' आना ही पड़ेगा | ' वह ढीठ होकर कुर्सी पर बैठ गया |
यहाँ नहीं आना चाहिए तुम्हें | ' उन्होंने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा दीं |
' डर लगता है ! '
वे कुछ नहीं कहते |
' इस लिए कि किसी को पता न चल जाए - इमेज बिगड़ सकती है ... है न ! '
उन्होंने उसके चेहरे से नजरें हटा लीं | पूछा , ' क्या काम है ? '
' वो वहाँ पेट फुलाए बैठी है|डिलीवरी होने को है|कभी भी हो जाए | '
उन्होंने गुस्से में उसकी ओर देखा और जेब से पर्स निकालकर सौ - सौ के कुछ नोट उसकी ओर बढ़ाये और बोले , ' लो रखो | '
नोट लेकर उसने गिने और बोला , ' इतने में काम नहीं चलेगा | '
' सचमुच बहुत कमीने हो ! ' उसकी बात सुनकर उन्होंने दांत पीसे |
अचानक उसके चेहरे पर सख्ती उभर आई और बोला , ' हमसे अधिक कमीने तुम हो - सफेदपोश ! ... अपनी कामान्धता के पीछे गाँव की उस भोली - भाली लड़की की इज्जत तो तुमने कहीं की नहीं रखी | अब फसे हो तुम उसकी गिरफ्त में | तडफड़ा रहे हो मुक्त होने के लिए ... किन्तु मुक्ति नहीं मिलेगी तुम्हें | '
उसके जाने के बाद वे ऑफिस की दीवारों को बड़ी गहरी नजरों से घूर रहे थे - जैसे दीवार पूर्णरूप से नंगी हो | **
- पवन शर्मा
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पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
जब सच की पोल खुल जाती है तो दीवरें भी नग्न हो जाती हैं
ReplyDeleteबहुत खूब।
बहुत सुंदर लघुकथा।
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