( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है
)
आँसू
आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं
वैसे ये
पानी हैं ,
फिर भी ये मानी हैं ,
तुच्छ समझने पर ,
भीतर तक गड़ते हैं |
आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं |
मोती हैं ,
फूल हैं ,
इन्द्रधनुष कहीं ,
कहीं धूल हैं ,
दुखों को सहते हैं ,
सुख से झगड़ते हैं ,
आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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