( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
दुष्काल : 1979
पता नहीं क्यों
अब की
रसमय जलधर नहीं झरे ?
जीवित हुई न घास ,
ताल मुँह फाड़े पड़े रहे ,
लिए हुए आकाश
पेड़ धरती में गड़े रहे ,
लावारिस लाश की तरह से
खेत पड़े हैं मरे |
पता नहीं क्यों ...
जूड़ी चढ़ी बयार ,
धूल के भँवर ,
भाप नदियाँ ,
दृश्यों - प्यासी धरा ,
उपासी निर्जल चौहदियाँ ,
फाँसी पाये कैदी - जैसी
दहशत से सब भरे |
पता नहीं क्यों ...
बाढ़ न आयी ,
गिरी न बिजली ,
पर डैन टूटे ,
हँसी ख़ुशी से रचे बचे सब
पर गूँगे छुटे ,
बदहवास अब शमशानों में
अपनों तक से डरें | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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