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25.4.20

प्रताप चौहान की कविता - ( 1 )
















साहित्य धरातल के पट की ,
          साक्षात् सरस्वती दिखती हो |
ओज झलकता है मुख पर ,
          जब मधुर काव्य तुम करती हो ||
तुम काया कंचन दर्पण हो ,
          तुम ज्ञान का सागर जय श्री हो |
तुम ही वेदों की रखवाली ,
          तुम ही कवियों की गुरुकुल हो || **

                    - प्रताप चौहान 

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