( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
जंगल में खो गया हूँ मैं !
भीड़ ही भीड़ है ,
इस भीड़ में कहाँ हूँ मैं ?
राह दिखती नहीं ,
जंगल है एक मनुष्यों का ,
सच कहूँ तो इसी
जंगल में खो गया हूँ मैं !
एक आवाज भी
लगती नहीं पहचानी ,
क्या पता कौन - सा
ये देता इम्तिहाँ हूँ मैं ?
एक मुद्दत हुई
सपना नहीं आया कोई ,
साँस के इस सफ़र से
इस कदर हैराँ हूँ मैं !
आपका रहमो - करम
रक्खे है ज़िन्दा मुझको ,
वरना लगता रहा ज्यों
मौत के दरम्याँ हूँ मैं !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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