( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक अक्षर और '' में, 1973 में रचित नवगीत )
विडम्बना
हम छटपटाते रहे
सुविधाओं के लिए
किन्तु अभाव हम पर हँसते गये ,
हम कसमसाते रहे स्वतंत्रता के लिए
किन्तु दबाब हमको कसते गये |
बदसूरत दुर्भाग्य की छाया में
हमें असफल होना ही था ,
किन्तु अकर्मण्य सिद्ध हुए हम
समस्याओं के सामने |
और
समस्याएँ भी एक नहीं
दो नहीं , एक के बाद एक
एक के साथ अनेक
- लम्बा सिलसिला -
इन्टरव्यू के बेमानी बदजायका प्रश्नों - जैसा ,
और
हमारा धैर्य चुकता गया
और हमारा माथा झुकता गया |
तभी
वे आये
और हमें देखकर
हमारे चेहरे पर उभरे
किसी अदृष्ट लेख को पढ़कर
वे हँसते गये |
और हम
अपनी ही असमर्थताओं की लज्जा में
धँसते गये गहरे
बहुत गहरे
और
हमारी यह गहराई ही
उनकी नीव है ,
जिस पर उनके प्रासाद खड़े हैं ,
और हम आज भी धरती में गड़े हैं |
**
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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