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15.3.20

सच को कैसे पहचानें

















( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )


सच को कैसे पहचानें 

चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे 
          सच को कैसे पहचानें हम -
जो दफ्न हुआ उसमें गहरे ?
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे ?

कहते भेड़िये न चीते हैं ,
जंगल में बात न डर वाली ,
पर राख , अधजली लकड़ी कुछ ,
टूटी चूड़ी , बोतल खाली ,
          लगता है जश्न मनाने को 
          कुछ आदमखोर यहाँ ठहरे |
कर दिये गये बेदखल लोग 
इन रियासतों - रजवाड़ों से ,
फिर भी बच पाया नहीं गाँव 
हथकंडों से , बटमारों के ,
          लगता कुछ देख न सुन सकते ,
          हैं यहाँ सभी अन्धे - बहरे |

सिरहीन कबन्धों वाले ही 
पहने हैं कवच सुरक्षा का ,
आकार और होगा भी क्या 
अन्धी औ '  छूँछी इच्छा का ?
          जन नहीं , न राष्ट्र , शेष कुर्सी ,
          कुर्सी पर पहरे ही पहरे |

चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे 
          सच को कैसे पहचानें हम -
जो दफ्न हुआ उसमें गहरे ?
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे ?
                                    *

            - श्रीकृष्ण शर्मा 
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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