( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
सच को कैसे पहचानें
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे
सच को कैसे पहचानें हम -
जो दफ्न हुआ उसमें गहरे ?
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे ?
कहते भेड़िये न चीते हैं ,
जंगल में बात न डर वाली ,
पर राख , अधजली लकड़ी कुछ ,
टूटी चूड़ी , बोतल खाली ,
लगता है जश्न मनाने को
कुछ आदमखोर यहाँ ठहरे |
कर दिये गये बेदखल लोग
इन रियासतों - रजवाड़ों से ,
फिर भी बच पाया नहीं गाँव
हथकंडों से , बटमारों के ,
लगता कुछ देख न सुन सकते ,
हैं यहाँ सभी अन्धे - बहरे |
सिरहीन कबन्धों वाले ही
पहने हैं कवच सुरक्षा का ,
आकार और होगा भी क्या
अन्धी औ ' छूँछी इच्छा का ?
जन नहीं , न राष्ट्र , शेष कुर्सी ,
कुर्सी पर पहरे ही पहरे |
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे
सच को कैसे पहचानें हम -
जो दफ्न हुआ उसमें गहरे ?
चेहरे - चेहरे - चेहरे - चेहरे ?
*
- श्रीकृष्ण शर्मा
----------------------------------------------------
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |