( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
कल की तरह
आज भी
मन नहीं लगेगा
कल की तरह |
आज भी
आकाश नहीं है प्रकृतिस्थ ,
मटमैलापन नत्थी है
धरती का
उससे |
सिर पर सवार हवा
साँस रोक कर
डाल रही है दबाव
और
सशंकित कौए
कर रहे हैं काँव काँव
इस गाँव में
उराँवों के नहीं हैं
ओझा या बेगा ! फिर
आधी रात के निचाट अँधेरे में
जागेगा जब ' ड्रेकुला '
ह्रदय के रक्त का प्यासा
तुम्हारे बिना अकेले मुझसे
वह कैसे सधेगा
कल की तरह |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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