( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से
ली गई है )
यह सपना ही तो है
भाग ( 2 )
सहसा आहट होती है | मैं चौंक उठता हूँ | नरेन के दद्दा आ रहे हैं | पास आ कर पौरी में बिछे तख़्त पर बैठ जाते हैं | मैं भी उठ कर बैठ जाता हूँ |
'' नींद नई आई तुमै ? मैं सोच रओ थो कि सो गए होगे , तेइके मारे थोड़ी देर बाद आओ मैं | '' वे कहते हैं , फिर पालथी मारकर बैठ जाते हैं |
'' बहुत कोशिश की पर नहीं आई | '' मैं कहता हूँ |
'' काए के लाने ? ''
'' मालूम नहीं | ''
'' यहाँ पे तुमै अच्छो नई लग रओ होगो , तेइके मारे | '' वे हँसे |
'' नहीं - नहीं ... ऐसी बात नहीं है | ''
'' तभी बिज्जू भी आ जाता है और दद्दा की बगल में बैठ जाता है | मैं देख रहा हूँ कि आज बिज्जू बहुत चुप है | कहता है, ''भैया क्यों नहीं आए ? ''
मैं चुप रहा | उसने फिर मुँह बनाया |
'' तुमै आवे में कोई परेशानी तो नई भई ? '' वे पूछते हैं |
'' नहीं...पहले भी तो आ चुका हूँ | परेशानी वाली कोई बात ही नहीं | '' मैनें झट से कहा |
वे कुछ नहीं कहते | थोड़ी देर माहौल शान्त रहता है | रात गहरी होती जाती है | गाँव लगभग सो चुका है | आवारा कुत्ते इधर - उधर दौड़ते हुए भौंक रहे हैं |
'' पानी पीओगे ? '' मैनें कहा |
'' हाँ प्यास तो लगी है |'' कहते हुए वे हँसे , फिर बिज्जू से बोले , '' जा रे , भैया के लाने पानी तो ले आ | ''
बिज्जू पानी लेने भीतर चला जाता है | भीतर बर्तन धोने की आवाज आ रही थी | शायद नरेन की माँ खाने - पीने के बर्तन साफ़ कर रही थीं |
'' तुम अकेले काए आए ? ... नरेन काए नई आओ ? ... वो भी आतो तो अच्छो रहतो | '' वे कहते हैं , फिर बीड़ी सुलगा लेते हैं |
मैं बैठा रहा - चुप | जड़ !
'' वो तो ठीक - ठाक होगो न ? '' उन्होंने पूछा |
मैं बैठा रहा - चुप | जड़ !
'' आओ काए के लाने नई ? पहले तो हर माह एकाध चक्कर लगा ही जातो थो | '' वे बुदबुदाते हैं | मैं सुन लेता हूँ | भीतर कुछ दरकने लगता है | मन कमजोर होने लगता है |
तभी बिज्जू एक गिलास में पानी लेकर आ जाता है |मैं पानी पीता हूँ और गिलास नीचे रख देता हूँ |बिज्जू फिर से दद्दा की बगल में बैठ जाता है |
'' तुमने वा की राजी - ख़ुशी की बात नई बताई अभी तक | '' उन्होंने कहा |
मैं बैठा रहा - चुप | जड़ !
'' अबकी बार भैया को आने दो | बात नहीं करूँगा | कह दुँगा - इत्ते - इत्ते दिन बाद आते हो ! '' बिज्जू कहता है , रूठा हुआ - सा | बारह - तेरह वर्ष का बच्चा ही तो है ... हे भगवान !
'' जे आखिरी साल है बा को ... फिर नौकरी लग जावेगी ... कहीं अफसर बन जावेगो वो ... जे ही इच्छा है हमरी | '' वे कहते हैं , जैसे कोई सपना देख रहे हों |
मैं बैठा रहा - चुप | जड़ !
'' जे साल वो चुनाव लड़नवालो थो कॉलेज को | का भओ ? '' वे पूछते हैं |
'' अं ... हाँ ... हाँ ... '' मैं जैसे किसी सपने से जागता हूँ |
सहसा मेरी आँखों में कुछ दृश्य तैर उठते हैं ...
नरेन चुनाव जीत गया है ... नरेन के गले में फूलों की माला ... रंग ... गुलाल फिजाँ में उड़ रहा है ... रंग ... बिरंगा गुलाल ... हरा ... पीला ... गुलाबी ... ख़ुशी ... उल्लास ... फिर ... तनाव ... आक्रोश ... अश्रुगैस ... लाठी - चार्ज ... नरेन कराहकर गिरता है ... सिर खून से लथपथ ... दम तोड़ता नरेन ... विरोधी पार्टी की चाल कामयाब !...
'' अच्छा रात भौत हो गई है , सो जाओ | '' वे कह रहे हैं | मैं जैसे फिर किसी सपने से जागता हूँ | वे चले जाते हैं ... बिज्जू पहले ही जा चुका है |
रात और भी गहरी हो जाती है | नींद आँखों से कोसों दूर है | बस , अन्तिम निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ मैं | ये विरोधी पार्टी की चाल नहीं , बल्कि प्रिन्सिपल और प्रोफेसरों की चाल थी | उन्हें डर था कि चुनाव जीतने के बाद नरेन कॉलेज मैनेजमेंट की पोल न खोल दे , जिन पर कि नरेन बड़ी आसानी से पहुँच गया था | कितने बड़ा षड्यंत्र ... उफ़ !
मैं यहाँ क्यों आया हूँ ? क्या यही बताने के लिए कि नरेन अब नहीं रहा ! मैं सोच नहीं पाता कि आख़िर सत्य कैसे बता पाऊँगा नरेन के दद्दा को ! क्या वे सहन कर पायेंगे ? ... और बिज्जू ... !*
- पवन शर्मा
-------------------------------------------------------------------------------
पवन शर्मा - कहानीकार , लघुकथाकार , कवि |
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |