( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
आप अफ़सोस करते रहे !
आप अफ़सोस करते रहे !
किन्तु वे
हर फ़सल आके चरते रहे !
हाल बेहाल था ,
बेबसी का क़दम - ताल था ,
तर हुआ आँसुओं - डूब रुमाल था ,
आप उद्घोष करते रहे ,
किन्तु वे
पंख आकर कतरते रहे !
दर्द बेदर्द था ,
झेलते - झेलते चेहरा जर्द था ,
कातिलों का मगर दिल बहुत सर्द था ,
आप आक्रोश करते रहे ,
किन्तु हम
सब बिना मौत मरते रहे !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-02-2020) को "हिन्दी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या" (चर्चा अंक 3606) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
विरोध क्यूँ नहीं कर पाए कभी ?
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