( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के गीत - संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है )
तुम नहीं हो इसलिए ही
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||
भावना का फूल मैं ऐसा खिलाना चाहता था ,
दृष्टी में हर एक के ही हो बसी जिनकी सुघरता ;
और जिसकी गन्ध के बादल गगन में छा रहे हों ,
वृष्टि की हर बूंद में जिसकी बरसती हो तरलता ;
खिल सके जिसमें सुघरतम - गन्धमय कविता - कुसुम यह ,
कल्पना में अब तलक मधुमास वह आया नहीं है ||
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||
चाहता गढ़ना अपरिचित मूर्ति अपनी कामना की ,
रूप के बदलाव में जिसको तनिक होती न देरी ;
बन रहा है एक धुँधला चित्र मेरी चेतना में ,
ये लकीरें दे नहीं पायीं जिसे अभिव्यक्ति मेरी ;
हू - ब - हू अपने ह्रदय में जो कि उस छवि को उतारे ,
किन्तु ऐसा सृष्टि में दर्पण कहीं पाया नहीं है ||
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||
आज कहना चाहकर भी कुछ न मैं कह पा रहा हूँ ,
क्योंकि भावुक मन सभी की वेदना से दुख गया है ;
देख लूँ तो चाँद नभ का भी उतर आये धरा पर ,
किन्तु मेरी ग़लतियों से आज माथा झुक गया है ,
पूर्ण होकर भी , तुम्हारे बिन सदा ही मैं अधूरा,
तुम नहीं हो , इसलिए ही प्राण हैं , काया नहीं है ||
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है |
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है ||
- श्रीकृष्ण शर्मा
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www.shrikrishnasharma.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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