( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से
ली गई है )
दावानल
सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि मैं समझ ही नहीं पाया |
नियुक्ति - पत्र मिलते ही मैं तीसरे दिन शहर छोड़ छोटे - से गाँव में आ गया - मास्टरी के लिए | मित्रों ने सलाह दी , क्या करेगा गाँव में रह कर ... गाँव के लोग गाँव छोड़कर शहर की ओर भाग रहे हैं और तू है कि शहर छोड़ गाँव भाग रहा है , भविष्य चौपट हो जायेगा ... आदि - आदि |
घर के लोगों में भी यही प्रतिक्रियाएँ थीं मेरे लिए | पर मैं अपनी जिद पर अड़ा रहा |
शुरू - शुरू में मुझे गाँव का माहौल रास नहीं आया , किन्तु जैसे - जैसे गाँव के लोगों से परिचय का दायरा बढ़ा , वैसे - वैसे गाँव और गाँव के लोग मेरे मन में समाते गए | गाँव का कोई बच्चा हो या बुजुर्ग , सभी के लिए मैं ' मास्साब ' हो गया ... एक अपनत्व भरा सम्बोधन |
गाँव की बसाहट बहुत सरल थी |
गाँव के बीच में एक नाला था , जो गाँव को सरपंची मोहल्ला और गोंडी मोहल्ला में बाँटता था |
सरपंची मोहल्ले में केशव सरपंच का मकान था , इसलिए इस मोहल्ले का नाम सरपंची मोहल्ला पड़ा | इसी मोहल्ले में फॉरेस्ट रेंजर मिश्राजी , फारेस्टर काशीराम , फारेस्ट गार्ड भूपतसिंग अपने - अपने परिवार के साथ सरकारी क्वाटरों में रहते थे |गाँव के सरकारी अस्पताल का कम्पाउंडर तथा नर्स भी इसी मोहल्ले में रहते थे | इस तरफ से ही तहसील के लिए पक्की सड़क जाती थी | इसी तरफ दो - तीन होटल भी थे | इसी तरफ सप्ताह में एक दिन ' हाट ' भी लगती थी |
पहले , दिन में तीन सरकारी बसें चलती थीं | अब प्राइवेट टैक्सियाँ भी चलने लगी हैं |
पहले हफ़्तों - हफ़्तों पुलिस का एक भी सिपाही नजर नहीं आता था , किन्तु अब रोज ही तहसील से आया एकाध सिपाही दिनभर मटरगश्ती करता या महुए की कच्ची दारु चढ़ाए जेब गर्म करने के लिए मुर्गा फँसता नजर आ जाता था |
सरपंच के बाजूवाले कमरे में मैं रहता था |
सरपंच ने अपने मकान के सामने वाले कमरे में किराने वाली दुकान डाल रखी थी | शहर से सामान लाता और गाँव के लोगों को ड्योढ़े - दूने दामों पर बेचता |
दूसरी तरफ गोंडी मोहल्ला में निम्न तबके के लोग रहते हैं , जिसके कारण सरपंची मोहल्ले के लोग उसे गाँव का उपेक्षित भाग मानते हैं |
इस मोहल्ले में घर जरा दूर - दूर कच्ची मिट्टी के बने थे | घरों की छाजन देशी खपरों की थी | हर घर के सामने परछी बनी होती | परछी के सामने भुट्टे रखने का 'जैरा ' होता | ढोर - डंगरों का स्थान घर के पीछे होता और वहीँ उनके खाने - पीने के लिए लकड़ी का नाद - डोंगा होता | घरों के पीछे ही लोगों के खेत थे |
इस मोहल्ले की औरतें और लड़कियाँ अपनी सुन्दरता बढ़ाने के लिए माथे , कनपटी तथा बाँह पर गोदना गुद्वातीं और हँसली , कर्णफूल , छन्नी , तोड़ा , उमेठा आदि विशेष पर्वों पर पहनतीं |
इस मोहल्ले के दूसरी तरफ जंगल - ही - जंगल था | साल , सागौन , बीजा , महुआ , तेंदू आदि के पेड़ों से अटा जंगल | जंगल के और आगे ऊँची पहाड़ी |
इसी गोड़ी मोहल्ले में मनोहर रहता |
मनोहर मेरी कहानी का नायक है | अन्य गँवई युवकों की तरह नहीं है मेरी कहानी का नायक | वह अक्सर मुझसे मिलता रहता है | मेरे घर भी आता रहता है |
'' मास्साब मुझे भी आपके जैसे बनना है ... बताओ , मुझे क्या करना पड़ेगा ? '' एक दिन मनोहर ने कहा | मैं चौंक गया |
'' कम - से - कम बारहवीं पास होना जरुरी है , उसके बाद ही बन सकेगा | '' मैं हँसा, फिर उलाहना दिया उसे , '' बारहवीं तो पास कर नहीं पाया | सपना देखता है मेरे जैसे बनने का | ''
सुनकर वह चुप रह गया |
'' फिर कैसे बनूँगा ? '' थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने पूछा |
'' खूब मेहनत करो ... पढ़ो - लिखो | '' मैने उसे समझाया |
वह फिर चुप रहा - जैसे कुछ सोच रहा है |
'' मजदूरी करूँ या पढाई करूँ - ये बात समझ में नहीं आती | '' उसने कहा |
अबकी बार मैं चुप था |
कुछ दिन बाद मुझे ख़बर लगी कि मनोहर ने फारेस्ट गार्ड भूपतसिंह तथा कम्पाउंडर को अपने दो - तीन साथियों के साथ मिलकर मारा है | दोनों को काफी चोंट आईं हैं |
'' तूने क्यों मारा उनको ? '' जब वह मिला , तब मैनें पूछा |
वह चुप रहकर हाथों की उँगलियाँ चटकता रहा |
'' बताता क्यों नहीं ? '' मैं खीझ उठा |
'' उन्होंने किसना की बहन को कुछ कहा था | '' वह बोला |
'' क्या कहा था ? ''
'' कहा ही नहीं , बल्कि हाथ भी पकड़ लिया था | '' वह लम्बी - लम्बी साँस लेने लगा , '' वह हाथ छुड़ाकर नहीं भागती तो ... '' मनोहर ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ आपस में रगड़ने लगा |
'' उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट तो नहीं की ? '' मैंने पूछा |
'' कैसे करेंगे ... गलती तो उन्हीं की थी | ''
हम दोनों के बीच थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी पसर गई |
'' मैं महसूस कर रहा हूँ कि तेरे भीतर का गुस्सा बहुत तेज है | '' मैनें पसरी हुई ख़ामोशी तोड़ी |
'' तो क्या करूँ ? ''
'' उस पर काबू रखना सीख | ''
'' कैसे रखूँ | '' वह बिफरने लगा , '' खून खौलता है मेरा , जब हमारे मोहल्ले के मजदूरों को मजूरी बीस की जगह दस मिलती है | ''
मैं सकते में आ गया |
'' हमारे मोहल्ले के लोग न हों तो सालों का काम भी नहीं चल सकता | '' वह उठता हुआ बोला , '' अब आप ही बताओ , ये जुलुम है कि नहीं ? ''
मैं निरुत्तर था |
थोड़ी देर बाद वह चला गया |
मैने महसूस किया कि मनोहर बेहद तुनकमिजाज , ठिठ , जिद्दी , जरा - जरा - सी बात पर भड़क उठनेवाला , बात - बात पर मरने - मारने पर उतारू हो जानेवाला है | यह उसके लिए अत्यन्त खतरनाक है |
एक दिन वह सुबह - सुबह आ धमका | मैं स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था |
'' अरे ! कैसे आया ? '' मुझे आश्चर्य हुआ |
'' आप कहते हैं कि गुस्से पर काबू रखना सीख , पर कैसे रखूँ ? ... बताओ ? '' उसकी आवाज तेज थी |
'' क्या हुआ ? ''
'' होगा क्या ... वे लोग जंगल - के - जंगल काट रहे हैं | साल , सागौन , सब - कुछ | ''
कौन लोग ? '' पूछते हुए मेरे माथे पर बल पड़ गए |
'' वही साले भूपतसिंह , काशीनाथ और उसके आदमी | ''
'' क्यों ? ''
'' शहर ले जाकर बेचते हैं | '' वह हाँफने लगा |
'' सचमुच , चिन्तावाली बात है | '' मैंने कहा |
कुछ और जानते हैं इनके बारे में ? '' मनोहर ने मेरे चेहरे पर अपनी नजरें जमा दीं |
'' क्या ? ''
( आगे अगले भाग में )
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा ( कवि , लघुकथाकार , कहानीकार ) |
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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