( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
मेरे स्वप्न अहम् हारे
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
समय के धुँधलके में -
ममता के चेहरे सब धुँधलाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
देहरी से बाहर
उस मधुऋतु के आने की
छाया - भर छूट गयी ,
मन में ही घुट - घुट कर
सुख की दो - चार बची
साँसें भी टूट गयीं ,
और अन्त में
मुझको आकर उपलब्ध हुई
आँच बस व्यथाओं की ,
जिसको कितने अभाव दहकाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
अब भी
स्मृत हैं मुझको
थे कितने प्यारे क्षण ,
कितने वे हिले - मिले
पर कितने न्यारे क्षण ,
जिनमें कुछ ऐसे भी
सहयात्री मिले मुझे -
पहचाने होकर
जो अनजाने बने रहे ,
अनजाने थे
पर पहचाने - से भावों को दुहराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
तब से अब तक
बिछुड़ी दमयन्ती - सी सुबहें ,
साँप - साँप करती - सी
उफ़ , सामन्ती घामें ,
रातों के रंग - राती
बुझे लौह - सी शामें ,
आ - आ कर
मेरे उस बीते का सुख ढाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
अब मेरे सम्मुख है
नरभक्षी सूनापन ,
शेष बचा है केवल
टूटा तन ,
हारा मन ,
मेरे सब स्वप्न
अहम् हारे ,
हो नत - मस्तक
अन्तहीन सीमा को अँधराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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