( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
दुर्गन्धों डूबी सुगंधियाँ
शीश तगाड़ी ,
बिना दिहाड़ी ,
सम्मुख ऊँची खड़ी पहाड़ी !
पस्त हौसले ,
त्रस्त धौंस ले ,
बिखर रहे हैं
बने घौंसले ;
किसको कोसें ,
किसको पोसें ,
अपनी मूंछें, अपनी दाढ़ी !
सबने चाहा ,
सागर थाहा ,
पर मंसूबा
था अनब्याहा ;
जैसे इंजन
छोड़ बढ़ गया ,
पीछे खड़ी रह गई गाड़ी !
मुकुट जरी के ,
माथे टीके ,
कुर्सी बैठे
लाट - सरीखे ;
सुविधाएँ
द्वारे दासी - सी ,
नंगे - भूखे - रुग्ण पिछाड़ी !
दुरभिसंधियाँ ,
कुहदबंदियाँ ,
दुर्गन्धों
डूबीं सुगंधियाँ ;
ये वहशी
दरिन्दगी उफ़ - उफ़ ,
साधो कत्तल , मारो - फाड़ी !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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www.shrikrishnasharma.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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