( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से
ली गई है )
पिछले भाग के अंश
खड़ेरा देव को खुश करने के लिए माहुल के पत्तों से बनी पुड्की में महुए की कच्ची दारु पी रहे हैं और मादल की थाप पर करमा कर रहे हैं |....
शेष भाग - ( 3 )
आज गोंडी मोहल्ले के लोग खड़ेरा देव से अपने मनोहर को माँग रहे हैं ... जो दो दिन से घर नहीं लौटा है |
मैं देखता हूँ कि मनोहर का बप्पा और उसकी माँ दोनों पैरों को मोड़कर पेट में दबाये उकडूं होकर बैठे हैं | मनोहर के माँ की चेहरे की झुर्रियों के बीच आँसुओं की सूखी लकीरें दिख रही हैं |
मै उठ जाता हूँ और जाने की तैयारी करता हूँ | मुझे खड़ा देख मनोहर का बप्पा और उसकी माँ मेरे पास आ जाते हैं , '' जाओगे मास्साब? ''
'' समय बहुत हो रहा है ... जाऊँगा | '' मैनें कहा |
खड़ेरा देव को प्रसन्न करते गोंडी मोहल्ले के लोग करमा बन्द कर देते हैं | अपनी परम्परा के अनुसार सभी सिर झुकाकर अभिवादन करते हैं |
'' मंगलू और दसनू को आपके साथ भेज देते हैं|'' एक वृद्ध ने कहा |
'' नहीं - नहीं ... मैं चला जाऊँगा ... आप परेशान न हों '' मैनें कहा |
कई लोगों ने एक साथ कहा , '' सँभलकर जाना मास्साब | "
मैं मुस्कराया | मैं उनकी चिन्ता को समझता हूँ |
पगडण्डी पर चलते हुए मैंने कंधे पर टंगे झोले में से टॉर्च निकाल ली |
गोंडी मोहल्ले के लोग फिर से मादल की थाप पर करमा करने लगे | अच्छा है कि चाँदनी रात है , सो रात में भी पगडण्डी धुँधली - धुँधली दिख रही है , किन्तु रात की भयावहता मन में समाई हुई है |
पगडण्डी नाले में जाकर समाप्त हुई |
मैं नाला पार करने ही वाला था कि टॉर्च की रोशनी के दायरे में नाले के दाईं ओर झाड़ियों में कुछ अटका हुआ - सा दिखाई दिया | मैनें टॉर्च की रोशनी पूरी तरह से झाड़ियों की तरफ की |
' मनोहर ! ' बेसाख्ता मेरे मुँह से घुटी - घुटी चीख़ निकल पड़ी |
खून से सना मृत मनोहर ! पेट की आँते बाहर निकली हुई | "
मादल की थाप पर खड़ेरा देव को मानते गोड़ी मोहल्ले के लोगों की धीमी - धीमी ध्वनि अब भी सुनाई दे रही है |
भय की तेज लहर शरीर में उतरने लगी | अचानक मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ | घर आकर लोटाभर पानी पिया , फिर खाट पर पसर गया | शरीर पसीना - पसीना था |
सरपंची मोहल्ला गहरी नींद में डूबा हुआ है | चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ है | कभी - कभी इधर - उधर कुत्ते भौंक उठते हैं | रात के सन्नाटे में उनके भौकने की आवाज और भी भयावह लग रही है | झींगुरों की आवाज से सन्नाटा और भी गाढ़ा हो रहा है |
मनोहर ने विरोध किया और मारा गया | मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि नाले के पास झाड़ियों में उलझी मैनें उसी की क्षत - विक्षत लाश देखी है |
लेकिन इतना घिनौना कृत्य कौन कर सकता है ? ... क्या काशीराम ? ... भूपतसिंह ? ... या फिर कम्पाउंडर ? ... मैंने अनुमान लगाया कि इस कृत्य में सम्भवतः मिश्राजी भी शामिल हो सकते हैं ! क्योंकि इनके अवैध धंधों में मनोहर ही तो फाँस बना हुआ था |
गला शुष्क होने लगा | उठकर पानी पीया और फिर खाट पर आकर लेट गया |
मेरे भीतर बेचैनी बढ़ती जा रही है | बार - बार मनोहर की लाश आँखों के सामने आ जाती है |
थोड़ी देर बाद केशव की परछी में तीन - चार लोग इकट्ठे हुए | परछी में अँधेरा था | केशव ने परछी की लाईट न जलाकर ढिबरी जलाई | ढिबरी की लौ हवा में इधर - उधर हिलने लगी , जिससे ढिबरी का मद्धिम प्रकाश भी इधर - उधर हिलाने लगा | सभी ने एक - दूसरे के चेहरों को गौर से देखा | उनके चेहरे पर एक विचित्र प्रकार की चमक थी | किसी ने धीमे - से कुछ कहा और थोड़ी देर बाद केशव को छोड़ बाक़ी लोग चले गए | केशव ने ढिबरी बुझा दी , फिर से घुप अँधेरा हो गया |
मैनें रात में एक सपना देखा ...
सपने में मनोहर एक भेड़िये से जूझ रहा है ... हू ... हू ... हू करता भेड़िया ... अपने नुकीले दांत चमकाता भेड़िया ... अपने शिकार पर झपटता भेड़िया ... मनोहर ने अपनी टंगिया से उस भेड़िये की गर्दन पर पूरी ताकत से वार किया ... भेड़िये का सिर धड से अलग ... सिर झाड़ियों में जाकर गिरा ... आश्चर्य ... भेड़िये का सिर और धड अलग होते ही चारों दिशाओं से असंख्य भेड़िये आ गए ... बीच में घिरा मनोहर ... अपनी टंगिया भांजता मनोहर ... हू ... हू ... हू की आवाज से जंगल काँपने लगा ... जंगल ... भेड़ियों का जंगल !
घबराहट के मारे नींद खुल गई | गला शुष्क था | शरीर पसीने से नहाया हुआ था | उठकर पानी पीया , फिर से खाट पर पसर गया | बहुत देर तक नींद नहीं आई |
मैनें निश्चय किया कि मनोहर की आग मुझे अपने भीतर जलानी है | *
- पवन शर्मा
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पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.comसंकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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