( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के गीत - संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है )
चाँदनी की देह
भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है |
टल गया है वह मुहूरत , जबकि पड़तीं
भाँवरें कुण्ठित सुखों की
इसलिए ही चुप हुआ है झिल्लियों के घर
पुरोहित मंत्र पढ़ता ;
क्या करे अभिनीत कोई और अभिनय
जब किसी ने है गिरा दी ,
मधुर सपनों की सुघर रंगस्थली के
सुखद दृश्यों पर यवनिका ;
घट गयी घटना यहाँ पर जो अचानक ,
है उसी की ओस साक्षी ,
और जिसकी याद करके साँस लम्बी
अब लगीं चलने हवा की ;
रात के अपराध पर अब तारिकाएँ
आत्महत्या कर रही हैं |
भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है |
- श्रीकृष्ण शर्मा
-------------------------------------------
www.shrikrishnasharma.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |