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30.1.20

राह में जब बढ़े














राह में जब बढ़े 

थी सुबह 
राह में जब बढ़े ,
हो गई शाम अब |

गंध का साथ था ,
धूप का 
शीश पर हाथ था ;
पंथ में 
इन्द्रधनु थे जड़े ,
गुमे गुलफाम सब |

दर्द को 
धड़कनों में लिये ,
गीत की बस्तियों में जिये ;
शब्द की 
अस्मिता को लड़े ,
हुए नाकाम अब |

बाजियाँ जीतते - हारते ,
तन गलाते
औ ' मन मारते ;
स्वप्न 
जितने थे हमने गढ़े ,
हुए गुमनाम अब |

             - श्रीकृष्ण शर्मा 
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  www.shrikrishnasharma.com


संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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