राह में जब बढ़े
थी सुबह
राह में जब बढ़े ,
हो गई शाम अब |
गंध का साथ था ,
धूप का
शीश पर हाथ था ;
पंथ में
इन्द्रधनु थे जड़े ,
गुमे गुलफाम सब |
दर्द को
धड़कनों में लिये ,
गीत की बस्तियों में जिये ;
शब्द की
अस्मिता को लड़े ,
हुए नाकाम अब |
बाजियाँ जीतते - हारते ,
तन गलाते
औ ' मन मारते ;
स्वप्न
जितने थे हमने गढ़े ,
हुए गुमनाम अब |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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