( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से
ली गई है )
उनकी जमीन
रहमान मियाँ खाँसते - खाँसते दुहरे हो गए | जलन की एक तेज लकीर रहमान मियाँ ने अपने गले से कलेजे तक महसूस की , जैसे कि उतनी जगह किसी ने चाकू से खुरच दी हो | वे अपनी छाती को दोनों हथेलियों से रगड़ने लगे | खाँसते - खाँसते अचानक रहमान मियाँ ने ढेर सारा बलगम मुँह से उगल दिया | बलगम में खून के कतरे दिखाई दिए | आँखें फाड़ - फाड़कर के कतरेयुक्त बलगम को देखने लगे , फिर आखें बन्द कर खाट पर लेटकर लम्बी - लम्बी साँसें लेने लगे | जब थोड़ी राहत महसूस हुई तो उठकर पानी पीया और बाहर आकर परचून की दुकान पर बैठ गए |
उन्होंने बाहर अपनी नजर घुमाई | सड़क के उस पार सामने वाले पानठेले पर ' चोली के पीछे क्या है ... ' गाना बज रहा है | दो - चार लफंगे जैसे लड़के गाने का आनन्द उठाते हुए बाजू में बने होटल में चाय छानती चमेली को भद्दे - भद्दे इशारे कर रहे हैं | चमेली मुस्करा रही है | रहमान मियाँ को गुस्सा आता है और सिर दूसरी ओर फेर लेते हैं | ' काका ऑटो गैरेज ' में चश्मा लगाये सिगरेट के कश लेता युवक अपनी मोटर साइकिल पण्डित से सुधरवा रहा है | पण्डित शहर से स्कूटर , मोटर साइकिल , मोपेड का काम सीखकर आ गया है और बाप ने उसके लिए गैरेज खुलवा दिया है | दिनभर में पचास - साठ लेकर ही उठता है | उसके आगे 'रमेस नऊआ' की दुकान है | वह भी पच्चीस - तीस दिनभर में कमा ही लेता है | और ये बिसेसर ... फल बेचता है | दिनभर में पचास - साठ के फल बेच लेता है | और - तो - और , ये मूंगफली बेचने वाले छोकरे पन्द्रह - बीस कमा लेते हैं |
रहमान मियाँ के दिल में एक टीस सी उठती है | यहाँ सब कमाते हैं | कमाई नहीं होती है तो रहमान मियाँ की | आज के समय में परचून की दुकान से लोग क्या खरीदेंगे ? अच्छा ही है कि झाड़ - फूँककर ऊपर के चक्कर दूर करने का गुर जानते हैं रहमान मियाँ | उसी से दिन में दस - पाँच आ जाते हैं , सो खर्च चल ही जाता है | बुढ़ापे की जान है | बीमारी पीछे पड़ी रहती है | बेचारा वैद्य है , दवा - दारु मुफ्त में दे जाता है | वैद्य जानता है कि रहमान मियाँ की आमदनी का कोई जरिया नहीं है | अन्य किसी को बिना पैसे लिए दवा नहीं देता | ' अल्लाह बरकत दे वैद्य को ' वे सोचते हैं |
रहमान मियाँ वहीँ बिछी चटाई पर सड़क की ओर करवट कर लेट जाते हैं | पहले सिर पर , फिर दाड़ी पर हाथ फिराते हैं | दुकान के दरवाजे पर कूं - कूं करती भूरी कुतिया आ जाती है और नजदीक आ कर उनके पैरों को चाटने का प्रयास करती है | वे भूरी के सिर पर हाथ फिराते हैं | भूरी वहीँ बैठ जाती है | वे सोचते हैं कि इन्सान से अच्छे जानवर होते हैं , जिन्हें खुदा ने अपने - पराये को पहचानने की काबलियत दी है | यही भूरी है , जो सालों से रहमान मियाँ के साथ है | रुखा - सूखा जो भी डाल दें वे , उसी को खाकर उनके आगे - पीछे घूमती रहती है | इन्सान साथ छोड़ दे , किन्तु जानवर साथ नहीं छोड़ता | यही कहावत पूरी चरितार्थ कर रही है | उन्हें लगता है कि अभी भी कोई साथ तो है उनके |
न जाने क्यों , रहमान मियाँ को अपना गुजरा हुआ वक्त याद आने लगता है ... धीरे ... धीरे ... दस साल के ऊपर हो गए यहाँ आए हुए | बेगम भी साथ थीं | तब चैकिंग पोस्ट पर इतनी दुकानें नहीं हुआ करती थीं | वे होटल चलाया करते थे | उनके हाथ की बनी चाय पीकर जानेवाला कई दिनों तक चाय का स्वाद नहीं भूल पाता था | बेगम भी उनके काम में हाथ बटाया करती थीं , किन्तु सुलेमान को उनसे , बेगम से तथा उनके होटल से कोई सरोकार नहीं था | वे लाख बार कहते कि उनके काम में हाथ बटाया कर , पर उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती | शहर में पढ़ने के लिए जाता और टाकीजों में नई पिक्चर लगने पर ब्लैक में टिकिट बेचता | पुलिस के हाथों कभी नहीं पड़ा | कई बार उन्होंने उसे उसका अच्छा - बुरा समझाया , किन्तु उसे उनकी हर बात टेडी ही लगती |
जैसे - तैसे कर सुलेमान ने मैट्रिक पास की | जिस दिन वह पास हुआ था , उस दिन उन्होंने पूरी चैकिंग पोस्टवालों को मिठाई बाँटी थी | उनकी आँखों में उगते हुए सपनों को लगभग सभी ने देखा था | उनकी बेगम ने भी | सुलेमान ने कभी भी उनकी आँखों में उगते हुए सपनों को देखने का प्रयास नहीं किया | उनकी आँखों में उगा हुआ सपना पूरी तरह पनप नहीं पाया कि सुलेमान ने उसे जड़ से उखाड़कर फेंक दिया था | पुलिस में भर्ती होते ही सुलेमान उन्हें और बेगम को छोड़ चलता बना | वे सिर्फ़ देखते भर रहे ... यहीं वे सम्बन्धों की कड़वाहट से परिचित हुए थे और अपने को बेऔलाद समझते रहे |
सुलेमान की याद करते - करते बेगम की मौत उनका सबसे अधिक दुःख भरा अतीत था |
सुलेमान की याद उन्होंने कभी नहीं की , पर कभी - कभी बेगम की याद उनके दिल में कसकने लगती |
पिछले साल सुलेमान को देख वे असमंजस में पड़ गए | उन्हें देख सुलेमान बोल पड़ा था , '' मेरी पोस्टिंग यहीं हो गई है अब्बा | ''
रहमान मियाँ ने कोई जबाब नहीं दिया था |
तब से वह हफ्ता वसूलने यहाँ डंडा घुमाता चला आता है | रहमान मियाँ से नजरें नहीं मिला पाता | वे लगातार बूढी होती आँखों से सब - कुछ देखते रहते और ठण्डी साँस भरते रहते |
भूरी कुतिया के भौकने से रहमान मियाँ की तन्द्रा टूट गई | सामने कल्लू आता दिखाई दिया | उनकी दुकान के बायीं ओर चौथे नम्बर की दुकान है उसकी | पूछने न आता हो | बाक़ी किसी को इस बूढ़े रहमन से कोई सरोकार नहीं है | दोनों की जात - पाँत अलग है , पर दोनों एक - दूसरे पर जान छिड़कते हैं | बेगम की मौत के बाद कल्लू की घरवाली कम - से - कम हारी - बीमारी में तो सुबह - शाम खाना बना कर भिजवा देती है | उनके मन से ढेरों दुआएँ कल्लू और उसकी घरवाली के लिए निकलती हैं |
'' क्यों चाचा , अब तबियत कैसी है ? '' आते ही बैठते हुए कल्लू ने पूछा |
'' अब तो जान निकलने के बाद ही ठीक होगी | '' रहमान मियाँ ने लेटे - लेटे कहा |
'' ऐसा क्यों कहते हो चाचा ... सौ साल जियो | '' कहकर कल्लू ने जेब से बीड़ी का बण्डल निकला और बीड़ी सुलगा ली |
'' क्या करना है कल्लू जीकर ... किसके लिए जीया जाए ! '' रहमान मियाँ उठकर बैठ गए | अब सड़क के उस पार सामने वाले पानठेले पर दूसरा गाना ' जुम्मे के दिन किया चुम्मे का वादा ... ' बज रहा है | लड़के अभी भी खड़े हुए हैं और हँस - हँसकर चमेली को इशारे कर रहे हैं | चमेली भी उन पर तिरछी नजर डालकर मुस्करा देती है | खड़े हुए लड़के खुश हो जाते हैं |
'' हरीराम की लौंडिया के बड़े लम्बे पर निकल आए हैं | खूब जमाबड़ा रहता है उसकी दुकान के आसपास | '' रहमान मियाँ वितृष्णा से कहते हैं |
'' तभी तो उसकी छोटी - सी चाय की दुकान चल रही है | साली रात में भी धन्धा करती है |'' कल्लू ने कहा , फिर बीड़ी का सुट्टा मारा |
'' मियाँ तुमने भी तो उसके ऊपर अपनी धौंस जमाने की कोशिश की थी | घास तक नहीं डाली लौंडिया ने तुम्हें तो | '' रहमान मियाँ हँसे |
बड़ी चालू चीज है चाचा ! जेब देखकर ही घास डालती है | '' कल्लू ने कहा फिर बीड़ी का सुट्टा मारा |
दोनों के बीच एक अजीब सन्नाटा पसर गया | सड़क की ओर देखने लगे | शहर से आने वाली सड़क सीधी राजधानी निकल जाती है | लगभग साठ किलोमीटर आगे जाकर बायीं ओर मुडनेवाली सड़क कई गाँव से होते हुई फिर से शहर जाने वाली सड़क से जुडती है | आवागमन का साधन होने से जाने और आनेवाली बसों , टैक्सियों में भीड़ भरी रहती है | चैकिंग पोस्ट होने की वजह से यहाँ प्रत्येक वाहन रुकता है | तब तक यहाँ का प्रत्येक दूकानदार उन वाहनों में बैठी सवारियों से कुछ - न - कुछ कमा ही लेता है | सुबह पाँच बजे से यह सड़क जो चलती है , रात लो ग्यारह - बारह बजे तक चलती रहती है | दुकानों के पीछे ही लोगों ने अपने रहने लायक दो - दो , तीन - तीन कमरे बना लिए हैं |
'' चाचा , मेहरारू से सुना कि चैकिंग पोस्ट में दस वर्ष से रहनेवालों को सरकार जमीन का पट्टा दे रही है | '' कल्लू ने उस सन्नाटे को तोड़ा |
( शेष भाग - 2 में )
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा कवि , लघुकथाकार , कहानीकार |
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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