( 1965 में रचित कविता , कवि श्रीकृष्ण शर्मा के काव्य - संग्रह - '' अक्षरों के सेतु '' से ली गई है )
आकांक्षा
मैंने
कभी चाहा था
कि चरणों पर धर सकूँ तुम्हारे
हाथों से उतार कर
- आकाश |
पर क्या कहूँ
नियति के इस निष्ठुर व्यंग को ?
कि
जब थीं तुम ,
ख़ाली थे मेरे हाथ |
और आज
जब सारा आकाश है हाथों में मेरे
- तुम जा चुकी हो !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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