( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से
ली गई है )
( भाग - 2 )
लगभग रात साढ़े नौ बजे राकेश आ गया |
'' क्या हुआ ? '' मास्टर दीनानाथ की पत्नी ने पूछा |
'' होना क्या अम्मा ... मेरे पहुँचने के पहले ही उसी दुकान के एक नौकर के भाई को सेठ ने रख लिया | '' राकेश ने उत्तर दिया |
राकेश की बात सुन कर मास्टर दीनानाथ के दिल में हूक उठी |
'' तूने सेठ को कुछ नहीं कहा | कहता तो सही कि मैं कितने दिन से चक्कर लगा रहा हूँ | '' मास्टर दीनानाथ की पत्नी परेशान हो उठीं |
राकेश हँस दिया , '' देखना अम्मा , मुझे उससे भी अच्छी नौकरी मिलेगी | ''
'' भगवान करे ऐसा ही हो | सत्यनारायण की कथा करवाऊँगी मैं | '' कहते हुए मास्टर दीनानाथ की पत्नी ने अपने दोनों हाथ जोड़े |
'' देर कैसे हो गई ? '' मास्टर दीनानाथ ने पूछा
'' नीलेश के ऑफिस तक निकल गया था | कलेक्ट्रेट में है | उसके पिताजी भी कलेक्ट्रेट में ही बड़े बाबु थे | नौकरी में रहते हुए उनकी एक्सीडेंट में मौत हो गई थी, सो नीलेश को अनुकम्पा-नियुक्ति मिली है | '' जूते के लैस खोलते हुए राकेश ने अपनी बात रखी , '' नीलेश को पहली तन्खाव्ह मिली - कहने लगा कि मुँह मीठा करके जाना | ''
कहने के बाद राकेश हाथ मुँह धोने चला गया |
मास्टर दीनानाथ की आँखों में एक तेज चमक उभर आई | वह चमक किसी ने देखी या नहीं , किन्तु स्वयं उन्होंने अपनी आँखों में वो चमक महसूस की | उन्हें ऐसा लगा कि उनके दोनों कानों के पास से पसीना बहता हुआ नीचे तक चुह आया हो |
राकेश के साथ खाना खाकर मास्टर दीनानाथ अपने बिस्तर पर लेट गए | लेटे - लेटे उनकी आँखों में वो चमक बार - बार उभर आती |
अनुकम्पा - नियुक्ति ... नीलेश को .. पिता की मृत्यु के बाद ... सोचते हैं वे ... कितनी सहजता से उसे सरकारी नौकरी मिल गई ... बस , थोड़ी भागदौड़ करनी पड़ी होगी ... ऑफिस के चक्कर काटनें पड़े होंगे उसे... वे कहाँ भटक रहे हैं ... राकेश कहाँ भटक रहा है ... यही पगडण्डी है , जिस पर चलकर वे राकेश को उस मुकाम तक पहुँचा सकते हैं , जिस मुकाम को पाने के लिए राकेश वर्षों से छटपटा रहा है ...
मास्टर दीनानाथ को लगता है कि उस जंगल में धसने जा रहे हैं , जहाँ उसका अन्त नहीं है | धीरे - धीरे उनके जेहन में एक सन्नाटा पसरता जा रहा है ... उन्हें लगता है कि ये सन्नाटा झींगुरों की आवाज से और भी गाढ़ा होता जा रहा है | पहले फिर भी तेज हवा चल रही थी , किन्तु अब वो भी चलना बन्द हो गई है ... कोई अन्त नहीं है उनके पास ... वे अकेले हैं उस पगडण्डी पर ... ठीक है... ये सफ़र अकेले ही तो तय करना है... जो होगा देखा जाएगा... राकेश तो ठिकाने लग जाएगा ... उसे अनुकम्पा - नियुक्ति मिल जाएगी ...
मास्टर दीनानाथ साइकिल पर स्कूल से लौट रहे हैं ... सामने तेजी से ट्रक आ रहा है ... वे सोचते हैं ... यही मौका है ... इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा... ऐसे ही मिल सकेगी राकेश को अनुकम्पा - नियुक्ति ... वे आश्चर्य में पड़ गए ... ठीक उनके सामने ट्रक के ब्रेक चरमरा उठे ... ट्रक रुक गया ... ड्राइवर खिड़की से सिर निकालकर भद्दी गाली और ताना दे रहा है , '' मेरा ही ट्रक मिला था मरने को ... '' साथ ही ड्राइवर की बेहद डरावनी हँसी ... दिल में नस्तर चुभने जैसे ... शरीर पसीने से लथपथ है ... हाथ - पैर सुन्न हैं ... हलक सूख गया है ... हलक से आवाज नहीं निकल रही उनके ... सिर्फ़ गों - गों ... हाथ - पैर सुन्न... शरीर पसीने से लथपथ...
सुबह की धूप एकदम उजली और चटक थी | मास्टर दीनानाथ ने अपने जीवन में पहली बार सोकर उठने में इतनी देरी की है , नहीं तो दिन निकलने से पहले ही बिस्तर छोड़कर उठ बैठते हैं |
उन्हें उठा जानकर उनकी पत्नी चाय बनाकर ले आई और चाय का कप थमाते हुए बोलीं , '' शायद तुम रात को कोई बुरा सपना देख रहे थे | ''
मास्टर दीनानाथ ने कोई जवाब नहीं दिया बस , मुस्कराकर ही रह गए |
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा
कवि , लघुकथाकार , कहानीकार
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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