( प्रस्तुत कहानी – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘ ये शहर है , साहब ’ से ली गई है )
मास्टर दीनानाथ
मास्टर दीनानाथ ने साइकिल बरामदे में खड़ी कर हैण्डिल पर टंगी कपडे की थैली उतारी और घर में घुस गए | दीवाल में गड़ी हुई कील पर उन्होंने कपड़े की थैली टांगी और जूते उतारकर लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गए | रोज की तरह उनकी पत्नी भीतर से एक लोटे में पानी ले कर आ गईं | मास्टर दीनानाथ ने पत्नी के हाथ से लोटा लिया और दो - तीन कुल्ले करने के बाद पानी पिया |
'' एक कप चाय पिला दो , थोड़ी थकान उतर जाए | '' मास्टर दीनानाथ ने कहा |
'' बनाकर लाती हूँ | '' कहने के बाद उनकी पत्नी ने ख़ाली लोटा उठाया और चौके में चली गईं |
मास्टर दीनानाथ सोचते हैं कि अब दो - चार किलोमीटर चलाने में ही थक जाते हैं | पहले तो मीलों दूर निकल जाते थे , लेकिन क्या मजाल कि शरीर में नाममात्र को भी थकान आ जाए |
अचानक उनके मुख पर हँसी तैर आई | अब कहाँ रही पहले जैसी बात | तब की बात में और अब की बात में जमीन - आसमान का अन्तर है | तब शरीर कसरती था , अब हड्डियों का ढाँचाभर है | दो वर्ष और रह गए हैं सेवानिवृत्ति के ; फिर कैसे की जा सकती है आज के समय की तुलना पहले के समय से |
पत्नी चाय बनाकर ले आईं| वे धीरे - धीरे चाय के घूँट भरने लगे | कुर्सी और मेज के बाजू में दीवार के सहारे बिछी चारपाई पर उनकी पत्नी बैठ गईं | वे पत्नी की तरफ देखते हैं | बिल्कुल बूढी दिखने लगी है !
'' आज बनिया का लड़का आया था | पैसे माँग रहा था | '' उनकी पत्नी ने कहा |
मास्टर दीनानाथ चौंक गए और बोले , '' तुमने क्या जबाब दिया ? ''
'' क्या कहती मैं - '' कह दिया कि मास्टरजी आएँगें , तो उन्हें बता दूंगी ''
'' बनिया जानता है कि आज तनख्व्ह मिली होगी , सो लड़के को भेज दिया | '' कहते - कहते मास्टर दीनानाथ भन्ना गए |
उनकी पत्नी कुछ नहीं बोलीं | वे चाय के घूँट भरते रहे |
'' राकेश कहाँ है ? '' मास्टर दीनानाथ ने पूछा |
'' शहर गया है | कह रहा था कि किसी होलसेल कपड़े की दुकान पर बुलाया है , शायद काम मिल जाए | '' उनकी पत्नी ने कहा |
मास्टर दीनानाथ ने चाय पीकर ख़ाली कप पत्नी की तरफ बढ़ा दिया | कप लेकर उनकी पत्नी भीतर चली गईं |
मास्टर दीनानाथ कुर्सी से उठ कर खाट पर लेट गए | ' बनिया का लड़का आया था | ' सुनकर चिन्तित हो उठे साथ ही क्रोध की लहर शरीर में समाने लगी | अब बनिया तकाजा भी करने लगा | आज तक या जब से मास्टरी शुरू की है , तब से उन्होंने किसी को भी तकाजा करने का मौका नहीं दिया है | जितना वेतन मिलता , उतने में ही घर का खर्च चलाते थे | कभी भी मिलने वाले वेतन से एक रुपया भी ऊपर खर्च नहीं किया | कभी किसी का रह गया , तो पूरी ईमानदारी से चुकाया |
लेकिन वे किस समय की बातों को सोच रहे हैं | पहले खर्च भी क्या था ? महँगाई भी कहाँ थी ? दोनों बच्चे छोटे - छोटे थे | जैसे - जैसे बच्चे बड़े होते गए , वैसे - वैसे खर्च भी बढ़ते गए | महंगाई भी बढती गई |
मास्टर दीनानाथ जानते हैं कि भले ही उनके खर्च बढ़े हों ... महँगाई बढ़ी हो , लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं रखी | अच्छी - से - अच्छी और महँगी से महँगी पुस्तकें लाकर दीं | बच्चे पढाई के नाम पर जो भी माँगते , वे लाकर देते | उनकी आँखों में सदैव एक ही सपना तैरता रहता कि उनके दोनों बच्चे किसी अच्छे काम - धन्धे या नौकरी में लग जाएँ |
ये उन दिनों की बात है , जब बड़ा किसी प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करने शहर निकल गया | कुछ दिनों तक बड़ा घर आता रहा , फिर धीरे - धीरे उसका घर आना कम हो गया और अन्त में बन्द | उन्हें पता लगा कि बड़े ने अपनी गृहस्थी बसा ली है | ये उनके जीवन का पहला और बड़ा अघात था | हालाँकि उन्होंने अपने जीवन में अनेक उतार - चढ़ाव देखे थे | जीवन के जिस तार को वे जोड़ रहे थे , बड़े ने एक ही झटके में उस तार को छिन्न - भिन्न कर दिया | उन्होंने सन्तोष कर लिया कि बड़े की गृहस्थी बस गई और वह अपने तरीके से अपना जीवन जीने लगा है | तब राकेश एम.ए.फ़ाइनल में था |
लेकिन वे इन सब बातों से विचलित नहीं हुए | वे यही सोचते रहे कि सब समय का फेर है , जब समय आ जायेगा , तब सब - कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा | समय अपनी गति से आगे सरकता रहा | वे पहले जहाँ थे , वहीँ रहे | राकेश की बेरोजगारी से उनके दिल में हूक - सी उठती |
अब अँधेरा घिर आया | खाट से उठकर स्विच दबाकर उन्होंने बिजली का बल्ब जलाया | बल्ब के जलने से कमरे में रोशनी हो गई |
चौके में बर्तन की उठा - पटक से उन्होंने अनुमान लगाया कि उनकी पत्नी खाना बना रही हैं |
राकेश शहर से अभी नहीं लौटा है | मास्टर दीनानाथ को चिन्ता सताने लगी | यहाँ से शहर ग्यारह - बारह किलोमीटर दूर है | बीच का रास्ता सूनसान पड़ता है | कहीं कुछ हो गया तो ?
कुछ नहीं होगा उसे - मास्टर दीनानाथ जानते हैं | बहुत बहादुर है , निडर है | क्या होगा उसे ? बेरोजगारी ही है , जिससे वे और राकेश डरते हैं |
'' खाना खाओगे ? पत्नी ने आकर पूछा |
'' राकेश आ जाए , तभी खा लूँगा ... अभी भूख नहीं है | '' उन्होंने कहा |
उनकी पत्नी फिर चौके में चली गईं |
( शेष भाग - 2 में )
- पवन शर्मा
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पवन शर्मा
कवि , लघुकथाकार , कहानीकार
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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