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10.1.20

निर्वसन संस्कृति खड़ी


( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है )




















निर्वसन संस्कृति खड़ी

छलावों के 
और धोखों के पड़ावों में ,
रह रहे हैं हम तनावों में |

लौह 
औ ' सीमेंट की काया ,
राक्षसी विज्ञापनी माया ;

भोगवाद उत्सवों के शामियानें ,
कोलतारों से भरे 
ख़ूनी तालावों में }

चेहरे 
खोये मुखौटों में ,
निर्वसन संस्कृति खड़ी 
घर और कोठों में ;

जिन्दगी कुछ के लिए 
आस्वाद जिस्मों का ,
और ढोते साँस कुछ 
जलते अभावों में |

     - श्रीकृष्ण शर्मा 
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 www.shrikrishnasharma.com


संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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