( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
निर्वसन संस्कृति खड़ी
छलावों के
और धोखों के पड़ावों में ,
रह रहे हैं हम तनावों में |
लौह
औ ' सीमेंट की काया ,
राक्षसी विज्ञापनी माया ;
भोगवाद उत्सवों के शामियानें ,
कोलतारों से भरे
ख़ूनी तालावों में }
चेहरे
खोये मुखौटों में ,
निर्वसन संस्कृति खड़ी
घर और कोठों में ;
जिन्दगी कुछ के लिए
आस्वाद जिस्मों का ,
और ढोते साँस कुछ
जलते अभावों में |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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www.shrikrishnasharma.com
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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