( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक अक्षर और '' से लिया गया है )
( कहते हैं ' सावन की झरन , भादौं की भरन ' , किन्तु भादौं सूखी गयी | पानी नहीं बरसा | परन्तु वर्ष के अन्तिम दिन 31 दिसम्बर 2000 को रात में अच्छी वर्षा हुई | फलस्वरूप यह रचना लिखी गई )
मावट की बारिश होने पर
आज हवा कुछ सीली - सी है ,
धरती गीली है ,
लगा
विदा के वक्त
वर्षा की आँख पनीली है |
कुछ दिन पहले
जेठ लिये था
हाथों जलती हुई लुकाठी ,
तार - तार की
छांह गदीली
मार - मार किरनों की साँटी ,
लगा
रेत से बतियाने में
भादौं भूली
चूल्हे रक्खी हुई पतीली है |
देखा मैने
शाम - शाम को
आसमान में कुछ कपास थी ,
पर उम्मीद न थी
पानी से ,
जीवित छन्दों के छपास की ,
सुबह हुई
साँसें गन्धायीं
लगा तृषित माटी ने
रात वारुणी पी ली है |
- श्रीकृष्ण शर्मा
---------------------------------------------------------
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |