( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है
)
'' अक्षरों पर बन्दिशें हैं ''
अक्षरों पर बन्दिशें हैं ,
शब्द पर पहरे ,
गीत अब किस ठौर ठहरे ?
चुप्पियों का
एक जंगल है ,
लग रहा
सब कुछ अमंगल है ,
सुन न पड़ता कुछ ,
आवाजें कहीं जाकर
गड़ गयी गहरे |
गीत अब किस ठौर ठहरें ?
घुट रही है
कण्ठ में वाणी ,
किन्तु फूटेगी
किसी ज्वालामुखी - सी
पीर कल्याणी ,
तब न जन के रहेंगे
यों दर्द में डूबे हुए
ये जर्द औ ' ख़ामोश चेहरे |
गीत अब किस ठौर ठहरे ?
अक्षरों पर बन्दिशें हैं
शब्द पर पहरे |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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