( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है
)
'' पहरे खड़े खबीस ''
अपनी - तपनी ही अच्छी है ,
बोलो , किसकी बात करें ?
बाहर और कहाँ है धरती ,
जिस पर जाकर पाँव धरें ?
भली लगे तो बात ना कोई ,
बुरी लगे तो सब झगरें !!
मुँह देखी कहते तो गादी ,
काहे रहते परे घरें ?
कह - सुन अपने दुख - सुख बाँटें ,
राग - द्वेष मां क्यों पजरें ?
पहरे खड़े खबीस - सिरकटे ,
खून पियें औ ' मांस चरें !!
हर पल यों मरने से बेहतर ,
इन्हें मार दें , भले मरें !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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