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3.11.19

'' स्वर उछाल कर कहें ''


( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है )
















'' स्वर उछाल कर कहें ''

मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

रोज - रोज की वह ही बेमानी दिनचर्या ,
वही - वही जड़े हुए दृश्य और तस्वीरें ,
वही - वही है चुभन करौंदों के काँटों की ,
कमोबेश वही - वही नाजायज जंजीरें ,
          पथरीली भीड़ की निरन्तरता में चुकते ,
          कैसे हम संवादी स्वर उछाल कर कहें ?
          मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
          कैसे हम वक्त के प्रवाह  में बहें ?

उम्र बढ़ रही जैसे - जैसे इस पोथी की ,
कागज़ के पन्नों का जीवन कम हो रहा ,
कोयलों की अनसूझी औ ' गीली खानों में ,
जल - जल कर मेहनतकश जीवन तम ढो रहा ,
          सूर्यमुखी जीवित क्षण चौरस्ते दफना कर ,
          कैसे हम जश्न के मजाक को सहें ?
          मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
          कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

                               - श्रीकृष्ण शर्मा
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shrikrishnasharma696030859.wordpress.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867



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