( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है
)
'' स्वर उछाल कर कहें ''
मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
रोज - रोज की वह ही बेमानी दिनचर्या ,
वही - वही जड़े हुए दृश्य और तस्वीरें ,
वही - वही है चुभन करौंदों के काँटों की ,
कमोबेश वही - वही नाजायज जंजीरें ,
पथरीली भीड़ की निरन्तरता में चुकते ,
कैसे हम संवादी स्वर उछाल कर कहें ?
मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
उम्र बढ़ रही जैसे - जैसे इस पोथी की ,
कागज़ के पन्नों का जीवन कम हो रहा ,
कोयलों की अनसूझी औ ' गीली खानों में ,
जल - जल कर मेहनतकश जीवन तम ढो रहा ,
सूर्यमुखी जीवित क्षण चौरस्ते दफना कर ,
कैसे हम जश्न के मजाक को सहें ?
मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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