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16.11.19

'' कैसा यह दौर ? ''

( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है )















'' कैसा यह दौर है ''

पंथ नहीं ,
फिर भी तो 
चलने का अंत नहीं |

पाँवों के नीचे आ 
पगडंडी टूट गई ,
आहट तक नहीं हुई 
ख़ामोशी छूट गयी ;

मन होता 
तोडूँ इस गहरे सन्नाटे को ,
पर मिलता वृंत नहीं |

चल - चलकर आये 
उस ठौर जहाँ -
मरुथल के भ्रम जन्मे ,
कुंठाएँ बंजर की 
रीढ़ तोड़ते अभाव 
सहती काया घर की ;

कैसा यह दौर ?
जहाँ 
जगता भय सभी कहीं |

- श्रीकृष्ण शर्मा 
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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