( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है )
'' कैसा यह दौर है ''
पंथ नहीं ,
फिर भी तो
चलने का अंत नहीं |
पाँवों के नीचे आ
पगडंडी टूट गई ,
आहट तक नहीं हुई
ख़ामोशी छूट गयी ;
मन होता
तोडूँ इस गहरे सन्नाटे को ,
पर मिलता वृंत नहीं |
चल - चलकर आये
उस ठौर जहाँ -
मरुथल के भ्रम जन्मे ,
कुंठाएँ बंजर की
रीढ़ तोड़ते अभाव
सहती काया घर की ;
कैसा यह दौर ?
जहाँ
जगता भय सभी कहीं |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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'' कैसा यह दौर है ''
पंथ नहीं ,
फिर भी तो
चलने का अंत नहीं |
पाँवों के नीचे आ
पगडंडी टूट गई ,
आहट तक नहीं हुई
ख़ामोशी छूट गयी ;
मन होता
तोडूँ इस गहरे सन्नाटे को ,
पर मिलता वृंत नहीं |
चल - चलकर आये
उस ठौर जहाँ -
मरुथल के भ्रम जन्मे ,
कुंठाएँ बंजर की
रीढ़ तोड़ते अभाव
सहती काया घर की ;
कैसा यह दौर ?
जहाँ
जगता भय सभी कहीं |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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