( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
'' हुए अपरिचित हम ''
इस सन्ध्या के तम में
हुए अपरिचित हम |
अपने लिए निरर्थक ,
अपने ही उपक्रम |
तर्क खड़े हैं तनकर ,
बहसें आग लिये ,
छूँछे शब्द गरजते
होठों झाग लिये ;
दुर्गन्धित बातों से ,
प्रदूषिता सरगम |
रिश्तों की गरमाहट
महज दिखावा है ,
फूल - हँसी मौसम का
सिर्फ़ छलावा है ;
अहसासों पर भारी ,
स्वार्थ और दिरहम * |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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* दिरहम : संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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