( श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है - )
अँधेरा बढ़ रहा है !
अँधेरा बढ़ रहा है ,
बात क्या डर की ?
रखा है दीप आले में ,
जलाओ तो !
अँधेरा बढ़ रहा है !
यही है दीप ,
जब सूरज नहीं रहता ,
उजाले की
यही तो बाँह गहता है ,
तिमिर के अन्ध सागर में
सहज मन से
यही तो रोशनी की कथा कहता है ,
कि जब सब मस्त सोते
नींद की बाँहों ,
अकेला
रात भर लड़ता ,
अँधेरों से ,
तनिक दे स्नेह ,
इसका मन बढ़ाओ तो !
अँधेरा बढ़ रहा है !
बड़ा मुश्किल समय है ,
क्रूर ग्रह घिर कर
लगे हैं
जिन्दगी को स्याह करने में ,
ख़ुशी के एक पल को छीन
हर पल में
हजारों
दहशतों का जहर भरने में ,
पिशाचों - सिरकटों का दौर ,
यह मावस ,
संभल कर ,
दीप से दीपक जलाओ तो ,
बबंडर रोशनी का
तुम उठाओ तो !
अँधेरा बढ़ रहा है !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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