(कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गया है -)
गीतों के स्वर
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
सुघर सलोने सपने मेरे ,
सुबह हुई तो झूठ रहे हैं |
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
छाले दृग में पड़े , ज्योति
आशा - विधुत की सहन नहीं थी ,
क्योंकि निराशा के तम की ही
आँखें तो अभ्यस्त रही थी ;
रिसता है पानी , सुधियों के
स्यात् फलोले फूट रहे हैं |
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर,राजस्थान,फोन नम्बर– 09414771867
गीतों के स्वर
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
सुघर सलोने सपने मेरे ,
सुबह हुई तो झूठ रहे हैं |
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
छाले दृग में पड़े , ज्योति
आशा - विधुत की सहन नहीं थी ,
क्योंकि निराशा के तम की ही
आँखें तो अभ्यस्त रही थी ;
रिसता है पानी , सुधियों के
स्यात् फलोले फूट रहे हैं |
गीतों के स्वर टूट रहे हैं ||
- श्रीकृष्ण शर्मा
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