( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है )
सन्ध्या - ( 2 )
सन्ध्या के संग मिटा ,
सूरज का स्वर्ण - लेख |
डूब गयी सबकी सब
बस्ती काले जल में ,
उलझा रह गया शिखर
मन्दिर का बादल में |
यात्राएँ ठहर गयीं
सड़कें अधरंग देख |
नीड़ों में सोयी है
अब थकान दिन भर की ,
जाग रहा सिर्फ दिया
आस सांजो घर भर की |
सन्नाटा बजता है ,
रातों की लिये टेक |
धरती का उजियारा
हथियाया तारों ने ,
गठियाये सपने सब
धूर्त औ ' लबारों ने ,
उफ़ , पिशाच - सीनों में ,
गड़ी नहीं किरन मेख |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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(आपके Like,Follow,Comment का स्वागत् है | धन्यवाद | )
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
सन्ध्या - ( 2 )
सन्ध्या के संग मिटा ,
सूरज का स्वर्ण - लेख |
डूब गयी सबकी सब
बस्ती काले जल में ,
उलझा रह गया शिखर
मन्दिर का बादल में |
यात्राएँ ठहर गयीं
सड़कें अधरंग देख |
नीड़ों में सोयी है
अब थकान दिन भर की ,
जाग रहा सिर्फ दिया
आस सांजो घर भर की |
सन्नाटा बजता है ,
रातों की लिये टेक |
धरती का उजियारा
हथियाया तारों ने ,
गठियाये सपने सब
धूर्त औ ' लबारों ने ,
उफ़ , पिशाच - सीनों में ,
गड़ी नहीं किरन मेख |
- श्रीकृष्ण शर्मा
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shrikrishnasharma696030859.wordpress.com
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